Aprajita Strot अपराजितास्तोत्रम्
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एक साधिका की सत्य घटना Kedarnath Yatra, kedarnath track,kedarnath incidence, केदारनाथ की घटना Kedarnath ki ghatna केदारनाथ की यात्रा से संबंधित आज आपको एक घटना बताते हैं।जो किसी साधिका की अपनी अनुभूति है। वेद और पुराणों में वर्णित भगवान श्री भोलेनाथ की कृपा की चर्चा तो सभी जानते हैं, भोलेभंडारी की कृपा को बरसते हुए भी साक्षात् देखा गया है। केदारनाथ यात्रा में हुआ यह कि एक साधारण परिवार कि साधारण सी साधिका एक दिन सपने में शिवलिंग की पूजन करते हुए वह स्वयं को देखती है,अचानक से उसके मन-मस्तिष्क में भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा का जन्म होने लगा। मन के भीतरी आयाम में हुए परिवर्तन बाहरी परिवर्तन के भी जन्मदाता होते हैं।वह साधिका घर में भोजन बनाती तो कान में हेड फ़ोन लगा कर हर समय मंत्र सुनती रहती,इस तरह से उसके शरीर में ऊर्जा के विज्ञान के कारण इतनी ऊर्जा बन गई कि एक दिन वह रात्रि भोजन बना रही थी। रात्रि के क़रीब 8:30 बजे होंगे,वह मंत्र सुनते हुए रोटी बना रही थी कि अचानक उस साधिका ने अपने दाहिने तरफ़ रसोई घर में ही कोई बीस-बाईस साल की युवती को मुस्कुराते हुए देखा।वह युवती के मुख-मंडल पर ऐसी दिव्य तेज थी कि मानो उसके चेहरे पर 100 वाट की बल्ब लगी हो। उन्होंने बौद्ध भिक्षुकों के रंग वाले कपड़े पहन रखे थे और वो युवती रूपी देवी ,थी तो साधिका के घर में किंतु उन देवी के पीछे का दृश्य बर्फ से ढँका पहाड़-मानो कैलाश पर्वत रहा हो।उस साधिका की दृष्टि क्षण भर के लिए बस पड़ी होगी उन पर ।अर्थात् इतना ही कि ऊपर वर्णित सारी चीजें वो समझ पाए ।फिर सब ग़ायब हो गया । केदारनाथ यात्रा के तीन महीने पहले अचानक साधिका के घर में सभी सदस्यों का “केदारनाथ यात्रा”की योजना बनी। 13 अक्तूबर 2021 में सपरिवार केदारनाथ की यात्रा हेतु निकल पड़ी। हवाई मार्ग से यात्रा होनी थी इसलिए 13 अक्तूबर को ही कुछ ही घंटे उपरांत देहरादून एयरपोर्ट में पहुँच कर ,फाटा के लिए गाड़ी ली गई। कहते हैं,उत्तराखण्ड की देवी हैं देवी “धारी देवी “। हम सब किसी दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश हेतु दरवाज़ा या घंटी बजाते हैं। धारी देवी मंदिर में जा कर माथा टेकने से उनकी अनुमति समान ही है। एक बालक अपनी माता के श्री चरणों में सिर रख जैसे उनसे अनुमति के साथ साथ उनसे उत्तराखण्ड जैसे प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्र में माता से रक्षा हेतु समर्पित भाव से आशीर्वाद माँग रहा हो।नदी के बीच स्थापित यह मंदिर बड़ा ही मनोहारी लगता है। कहते हैं जो भी लोग इनकी उपेक्षा कर अपनी गाड़ी रोकर इनसे आशीर्वाद लिये बिना आगे बढ़ जाते हैं, उन्हें बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।नदी से संबंधित सरकारी योजनार्थ इस मंदिर को कहीं अपने स्थान से कहीं और स्थापित करने की उत्तराखण्ड सरकार ने पहल की थी, यहाँ के स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसी कारण जून 2013 की भीषण त्रासदी उत्तराखण्ड में आई थी। यहाँ की सरकार भी इनकी अवहेलना करने से डरती है। धारी देवी माता के दर्शन के उपरांत आगे के पड़ाव हेतु चला गया और जिस होटल में बुकिंग थी फाटा में वहाँ रात भर रुका गया। रास्ते का थकान किंतु अलखनंदा की अठखेलियाँ करते हुए इस पवित्र नदी के किनारे होटल के कमरे से देख,मन और शरीर की सारी थकान समाप्त हो गई। सुबह स्नान ध्यान के बाद हेलीकाप्टर से केदार घाटी के दृश्य देखते हुए भोलेनाथ के दर्शन की तीव्र इच्छा मन को रोमांचित कर रही थी कि अचानक सूचना मिली, तकनीकी कारणों से अनिश्चित क़ालीन हेलीकॉप्टर की सुविधा स्थगित कर दी गई है। मन बड़ा उदास हुआ। केदारनाथ के दर्शन धूमिल नज़र आने लगे। किंतु हिम्मत बटोरते हुए पुनः पैदल यात्रा का मन बना। यात्रा शुरू की गई, कुछ ही किलोमीटर चलने पर ऊँचाई बढ़ने लगी और साँसों की समस्या आने लगी,लगा जैसे केदारनाथ के दर्शनों की इच्छा अधूरी रह जाएगी और लौटना पड़ जाएगा।जब हिम्मत टूटने लगती है तो प्रभु का सहारा मिल जाता है।रास्ते में तुरंत कोई हज़ारों फूलों की सुगंध जैसे आह्वान के साथ ही पीछे लग गये और जैसे शरीर को हल्का कर दिया गया हो या पीछे से कोई जैसे सहारा दिए शरीर का आधा भार उठाए चलने में सहायता कर रहा हो-कौन सी अदृश्य शक्ति थी वो,मालूम नहीं। भोले के दर्शन हेतु बहुत योजना बना कर गई थी वह, मंदाकिनी में स्नान कर दर्शन करूँगी—किंतु संभवतः वहाँ जाने मात्र से ही शरीर और आत्मा की अशुद्धियाँ समाप्त होने लगती हैं।चलते चलते सुबह से रात दस बज चुके होते हैं और अब आगे चलने की शक्ति नहीं ,इसलिए भीषण ठण्डी भरे रात्रि में केदारनाथ मंदिर से ठीक एक किलोमीटर पहले एक एल शेप की छत मिलती उसी के नीचे ठण्ड से किकुड़ते रात बिताया। सुबह ठीक 3:20 बजे उस साधिका की नींद खुली और उसने सिर उठा कर देखा तो उस दिव्य स्थान से पेड़ पौधे नदियाँ सब मानवीय रूप धारण कर हाथ में आरती के थाल लिए थाल में धधकती ज्वाला और उतना ही तेज़ उन सभी मानवीय रूप धारण किए सभी युवतियों के चेहरे पर थी, सभी भोलेनाथ की आरती-पूजन हेतु न जानें कितने असंख्य देवी देवता, यक्ष ढोल नगाड़े बजाते हुए सब मुख्य मंदिर की तरफ़ जा रहे थे। यह नजारा देख साधिका डर गई।क्योंकि वह तुरंत सो कर उठी थी,उसे कुछ समझ आता तब तक सारी चीजें अदृश्य हो चुकी थी।साधिका के दिमाग़ में वही दृश्य और घंटा नाद की ध्वनि हमेशा गूँजती रहती है बस। उस स्थान की पवित्रता इतनी है कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है।उस पवित्र स्थान में शौच आदि भी करना धरती को अपवित्र करने जैसा है,उसकी दिव्यता -चारो तरफ़ श्वेत हिमाच्छादित पर्वत,नीले आकाश धरती पर भी बर्फ की चादर बिछी हुई,ऐसा लगता है जैसे सचमुच भोलेनाथ की दिव्य उपस्थिति हो ही। दर्शन हुए और साधिका को वहाँ पाँच पत्तों वाला केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ा बिल्व पत्र मिला।वहाँ के पुजारी ,जिन्हें “रावल” कहते हैं ,उन्होंने दिया। साधिका “पंचकेदार “ के प्रतीक के रूप में वह बिल्व पत्र लेकर ख़ुशी से रोने लगी और मुख्य मंदिर की परिक्रमा के उपरांत भोलेनाथ का ध्यान कर जप की । क्योंकि हिमालय क्षेत्र में
64 योगिनी जैसे नाम से ही पता चलता है की 64 योगिनी 64 देवियों की शक्ति है क्योंकि परलोक की शक्तियां असंख्य अंश से मिलकर बनी होती है इसलिए यह 64 देवियां एक देवी के रूप में भी आ सकती है और चाहे तो अलग-अलग 64 रूपों में आ सकती है पंच तत्वों से निर्मित शरीर रूप नहीं बदल सकते लेकिन पारलौकिक शक्तियां कितने भी रूप धारण कर सकती हैं आपने 64 योगिनियों के बारे में बहुत कुछ सुना होगा यह सभी आदिशक्ति मां काली के अंश अवतार कहलाते हैं तो कभी मां दुर्गा के दुर्गाकुल के अवतार कहलाते हैं यह सभी शक्तियां मां पार्वती महालक्ष्मी महाकाली और मा सरस्वती के अंश से भी उत्पन्न हुई है असल में सभी देवियों के अंश से कई योगिनिया उत्पन्न होती हैं जो उनकी सेविकाएं होती हैं 64 योगिनियों में 10 महाविद्याएं नवदुर्गाएं और अन्य शक्तियों के अवतारी अंश होते हैं इन्हें प्रमुखतः मां काली और मां दुर्गा के कुल से संबंध बताया जाता है योगिनी शक्तियों का प्रयोग इंद्रजाल षट्कर्म वशीकरण मारण मोहन स्तंभन जैसी क्रियाओं व धन प्राप्ति व्यापार उन्नति में होता है जब इनका उद्देश्य सात्विक व पवित्र हो तो जल्दी सिध्द हो जाती है कोई भी साधक चाहे तो 64 योगिनी साधना के द्वारा इन्हें सिद्ध कर सकता है या किसी एक योगिनी को भी सिद्ध कर सकता है 64 योगिनी साधना करवाने की क्षमता बहुत ही कम गुरुओं में है क्योंकि 64 योगिनी शक्ति बहुत शक्तिशाली है इनको संभालना भी बहुत सावधानी का कार्य है वैसे तो देश में कई राज्यों में 64 योगिनी मंदिर है जैसे उड़ीसा और मध्य प्रदेश हम मध्य प्रदेश के भेड़ाघाट में स्थित 64 योगिनी मंदिर के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं इस मंदिर में गोलाकार आकृति में 64 योगिनीया स्थापित की गई हैं और उनके बीचो-बीच शिव पार्वती का मंदिर निर्मित है यह मंदिर जबलपुर से लगभग 20-22 किलोमीटर दूर सफेद संगमरमर चट्टानों के लिए प्रसिद्ध भेड़ाघाट पर्यटन स्थल में उपस्थित है इन मंदिर की मूर्तियों को विधर्मियों ने खंडित किया था लेकिन आज भी यह मंदिर उपस्थित है एक समय तंत्र साधना का बहुत ही अच्छा केंद्र इस 64 योगिनी मंदिर में था यहां तंत्र विद्या भी सिखाई जाती थी यह मंदिर गोलकी मठ के नाम से भी प्रसिद्ध था लेकिन मुगलों के शासनकाल में यहां तंत्र साधनाएं बंद करा दी गई और गोलकी मठ को भी बंद कर दिया गया यहां दोबारा पूजा पाठ की शुरुआत बहुत ही बाद में हुई यह स्थान भेड़ाघाट 64 योगिनी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है इस मंदिर में भेड़ाघाट के समीप छोटी सी ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर गोलाकार रूप में 64 योगिनियों की प्रतिमा स्थापित है और बीचो-बीच भगवान शिव की प्रतिमा है चारों तरफ यह 64 योगिनीया ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे शिवजी को ही देख रही हो इस मंदिर का निर्माण कलीचुरी वंश ने करवाया था यह मंदिर रानी दुर्गावती के राज्य में आता है ऐसी मान्यता है कि यहां पर दुर्वासा ऋषि ने साधना की थी अपनी नर्मदा परिक्रमा के दौरान इसके बाद से यह स्थान साधना के लिए पवित्र माने जाने लगा था बाद में यहां पर मंदिर निर्माण कराया गया ऐसा माना जाता है कि यहां की नव विवाहित रानी नोहला देवी जब यहां आई तो सर्वप्रथम उन्होंने भगवान शिव के मंदिर का निर्माण करवाया और प्रांगण के तौर पर गोलाकार गोलकी मठ का निर्माण करवाया और फिर 64 योगिनियों की मूर्तियों का निर्माण करवाया गया इस प्रकार यह मंदिर बनकर तैयार हुआ 64 योगिनी पवित्र शक्तियों में से मानी जाती हैं जो साधक की जीवन पर्यंत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करती हैं योगिनी शक्ति सबसे उत्तम शक्ति होती है एक साधक के लिए सिद्धि के रूप में 64 योगिनियों में एक महालक्ष्मी योगिनी भी होती हैं जो माता लक्ष्मी का अंश अवतार है इस अंश अवतार की सिद्धि श्री शिवम गुरुजी ने प्राप्त करने के बाद साधना क्षेत्र में एक विस्फोट ला दिया था और 64 योगिनियों की लुप्त हुई साधना को दोबारा प्रचलन में ला दिया श्री शिवम गुरुजी बहुत ही कम आयु के ऐसे साधक व बाद में गुरु हुए जिन्होंने कठिन और उग्र बताई जाने वाली साधनाओं को भी बहुत ही सरल रूप से साधकों के बीच उपलब्ध करा दिया श्री शिवम जी बड़ी साधनाओं में रातों-रात प्रसिद्ध हो गए क्योंकि उन्होंने ऐसी साधना सिद्ध की जिसमें कोई प्रतिद्वंद्वी थे ही नहीं कोई और इन साधनाओं को करने की हिम्मत जुटा ही नहीं पाया या उचित गुरु ही उपस्थित नहीं थे श्री शिवम जी ने वही साधनाएं आमजन में प्रचार व प्रसार की जो साधकों के जीवन में उन्नति प्रदान करें 64 योगिनी साधना भी पवित्र रूप में साधकों के बीच में शिवम् जी ने प्रकट की—— जय मां 64 योगिनी
जाप करने के तीन सामान्य प्रकार होते हैं जिन्हें वाचिक उपांशु जप और मानसिक जप कहा जाता है जब जाप किया जाता है तो उसका कारण होना चाहिए जैसे साधना सिद्धि या अनुष्ठान के रूप में कर रहे हैं या सिर्फ भक्ति के लिए, यदि सिर्फ भक्ति के लिए जाप किया जा रहा है तो माला की आवश्यकता नहीं है लेकिन यदि जाप साधना के लिए सिद्धि पाने के लिए या मंत्र सिद्ध करने के लिए किया जा रहा है तो माला से जाप आवश्यक है जिससे कि मंत्र की ऊर्जा बन सके और जल्दी सफलता प्राप्त हो जाए ग्रामीण क्षेत्रों में जब ऐसे साधकों से साधना करवाई जाती है जो पढ़े-लिखे नहीं होते और ना ही माला का ज्ञान होता है उन्हें साधना करवाने के लिए माला नहीं दी जाती और सिर्फ मंत्र याद करवाया जाता है तथा सारा काम करते हुए दिन भर मंत्र जाप करने की आज्ञा दी जाती है ऐसे साधक खेतों में काम करते हुए भी मंत्र जाप करते रहते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं इन्हें सिद्धि भी प्राप्त होती है इसीलिए ऐसा कहना की माला हमेशा आवश्यक है गलत है कहा माला जरूरी है जब कोई साधक किसी देवी देवता को प्रसन्न करने हेतु और सिद्धि या मनोकामना पूर्ति हेतु अनुष्ठान करता है तो वह एक निश्चित जाप संख्या का जाप करता है जिसके लिए प्रतिबद्ध होकर प्रतिदिन की एक जाप संख्या तय करके जाप करता है तो माला अति आवश्यक होती है जिससे जाप संख्या कम या अधिक न हो जाए ऐसे कार्य में माला होना आवश्यक है कौनसी माला किसके लिए उपयोग की जाती है यह प्रश्न उठता है यहां सभी देवताओं के लिए रूद्राक्ष माला उपयोग की जा सकती है और श्रीकृष्ण जी के जाप के लिए तुलसी माला, चंदन माला ,श्रीराम के लिए तुलसी माला या चंदन माला,बाकी देवताओं के लिए रूद्राक्ष माला उपयोग की जाती है व सभी देवी शक्ति के लिए चंदन या स्फटिक माला उपयोग कर सकते हैं एवं लक्ष्मी जी के अलावा अन्य किसी भी देवी के लिए रूद्राक्ष माला उपयोग कर सकते हैं जय श्री कृष्णा जय श्री महाकाल
हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है इसकी कथा कुछ इस प्रकार है श्री परम पावन भूमि कैलाश पर्वत पर विशाल वट वृक्ष के नीचे भगवान शिव पार्वती एवं सभी गणों सहित अपने बाघम्बर पर विराजमान थे बलवान वीरभद्र भृंगी ,श्रृंगी नंदी आदि अपने अपने पहरों पर सदा शिव के दरबार की शोभा बढ़ा रहे थे । गंधर्वगण किन्नर,ऋषि हर भगवान की अनुष्टुप छंदों की स्तुति गान कर वाधों के बजाने में संलग्न थे। इस शुभ अवसर पर महारानी पार्वती जी ने भगवान शिव से दोनों हाथ जोड़कर प्रश्न किया की है महेश्वर! मेरे बड़े सौभाग्य हैं जो मैंने आप के जैसे पति को पाया है क्या मैं जान सकती हूं वह कौन सा पुण्य था आप तो अंतर्यामी है मुझे बताने की कृपा करें पार्वती जी की ऐसी प्रार्थना सुनने पर शिवजी बोले है है प्रिय,तुमने अति उत्तम पुण्य का संग्रह किया था,जिसे तुमने मुझे प्राप्त किया है वह अति गुप्त है फिर भी तुम्हारे आगे पर प्रकट करता हूं भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के तीज का व्रत हरताल के नाम से प्रसिद्ध है यह व्रत जैसे तारागणों में चंद्रमा,नवग्रह में सूर्य,वर्णों में ब्राह्मण, नदियों में गंगा,पुराणों में महाभारत, वेदों में साम,इंद्रियों में मन,ऐसा ही यह व्रत श्रेष्ठ है। जो तीज हस्त नक्षत्र युक्त पड़े तो वह और भी महान पुण्य दायक होती है, ऐसा सुनकर शिव पार्वती जी ने पूछा-है महेश्वर ! मैंने कब और कैसे यह तीज का व्रत किया था? विस्तार के साथ मुझे सुनाने की कृपा करें , इतना सुन भगवान शंकर बोले भाग्यवान उमा ! भारत के उत्तर में एक श्रेष्ठ पर्वत है उसके राजा का नाम हिमाचंल है वहां तुम भाग्यवती रानी मैंना के गर्भ से उत्पन्न हुई थी ! तुमने बाल्यकाल से ही मेरी आराधना करना आरंभ कर दिया था ! कुछ उम्र बढ़ने पर तुमने हिमालय की दुर्गम गुफाओं में जाकर मुझे पाने हेतु तपस्या की थी, तुमने ग्रीष्म काल में चट्टानों पर आसन लगाकर तपस्या की थी वर्षा ऋतु में पानी में तप किया शीतकाल में पानी में खड़े होकर मेरे ध्यान में संलग्न रही इस प्रकार 6 कालों में तपस्या करके भी जब मैं दर्शन ना मिले तब तुमने ऊर्ध्वमुख होकर केवल वायु सेवन की,फिर वक्षों के सूखे पत्ते खाकर इस शरीर को क्षीण किया । ऐसी तपस्या में तुम्हें लीन पाकर महाराज हिमांचल को अति चिंता हुई और तुम्हारे विवाह हेतु भी चिंता करने लगे । इसी शुभ अवसर पर महर्षि नारद जी उपस्थित हुए राजा ने हर्ष के साथ नारद जी का स्वागत व पूजन किया उपस्थित होने का कारण जानने के इच्छुक हुए ।नारद जी ने कहा, राजन में भगवान विष्णु का भेजा गया हूं । मैं चाहता हूं कि आपकी सुंदर कन्या को योग्य वर प्राप्त हो, बैकुंठ निवासी शेषशायी भगवान ने आपकी कन्या का वरण स्वीकार किया है। राजा हिमांचल ने कहा महाराज मेरे सौभाग्य हैं जो मेरी कन्या को विष्णु जी ने स्वीकार किया है। मैं अवश्य ही अपनी कन्या उमा का कन्यादान करूंगा। यह सुनिश्चित हो जाने पर नारद जी बैकुंठ पहुंचकर श्री विष्णु भगवान से पार्वती जी के विवाह का निश्चित होना उनको सुनाया। इधर महाराज हिमाचल ने वन में पहुंचकर पार्वती जी से भगवान विष्णु से विवाह होने का निश्चित समाचार उनको सुनाया। ऐसा सुनते ही पार्वती जी को महान दुख हुआ। उस दुख से तुम बहुत विह्वल कर अपनी सखी के पास पहुंचकर विलाप करने लगी ।तुम्हारा विलाप देखा सखी ने तुम्हारी इच्छा जानकर कहा, देवी मैं तुम्हें ऐसी गुफा में तपस्या को ले चलूंगी जहां तुम्हें महाराज हिमांचल कभी भी ना ढूंढ सकेंगे। ऐसा कहकर उमा उस सहेली सहित हिमालय की गहन गुफा में विलीन हो गई । तब महाराज हिमांचल घबराकर पार्वती जी को ढूंढते हुए विलाप करने लगे कि मैंने विष्णु को वचन दिया है, वह कैसे पूर्ण हो सकेगा ? ऐसा कहकर मूर्छित हो गए तत्पश्चात सभी पुरवासियों को साथ लेकर ढूंढने को महाराज जी ने पदार्पण कर ऐसी चिंता करके कहा कि क्या मेरी कन्या को कोई व्याघ्र खागया है, या सर्प ने डस लिया है ,या कोई राक्षस ले गया है उस समय तुम अपनी सहेली के साथ ही गहन गुफा में पहुंचे,बिना जल अन्न के व्रत को आरंभ करने लगी। उसे दिन बाद मास की तृतीय शुक्ल पक्ष हस्त नक्षत्र युक्त थी। व्रत पूजा के फल स्वरुप मेरा सिंहासन हिल उठा तो मैं जाकर तुम्हें दर्शन दिया, तुमसे कहा -देवी मैं तुम्हारे व्रत और पूजन से अति प्रसन्न हूं तुम अपनी कामना का मुझे वर्णन करो । इतना सुन तुमने लज्जित भाव से प्रार्थना की, कि आप अंतर्यामी है ,मेरे मन के भाव आपसे छुपे हुए नहीं है, मैं आपको पति स्वरूप में चाहती हूं। इतना सुनकर मैं तुम्हें एवमस्तु इच्छित पूर्ण वरदान दे अंतर ध्यान हो गया ।इसके बाद तुम्हारे पिता हिमांचल मंत्रियों सहित ढूंढते ढूंढते नदी तट पर मारे शोक से मूर्छित होकर गिर पड़े ।इस समय तुम सहेली के साथ मेरी बालू की मूर्ति विसर्जन करने हेतु नदी तट पर पहुंची । तुम्हारे नगर निवासी मंत्रीगढ़ हिमांचल सहित तुम्हारे दर्शन का अति प्रसन्नता को प्राप्त हुए और तुमसे लिपट लिपटकर रोने लगे। बोले उमा तुम इस भयंकर वन में कैसे चली आई हो जो अति भयानक है । यहां सिंह, व्याघ्र,जहरीले भयानक सांपों का निवास है ,जहां मनुष्य के प्राण संकट में हो सकते हैं अतः पुत्री इस भयंकर वन को त्याग कर अपने ग्रह को प्रस्थान करो पिता के ऐसे कहने पर तुमने कहा पिता मेरा विवाह तुमने भगवान विष्णु के साथ स्वीकार किया है, इससे मैं इसी वन में रहकर अपने प्राण विसर्जन करूंगी ऐसा सुन महाराज हिमांचल अति दुःखी हुए और बोली प्यारी पुत्री तुम शोक मत करो । मैं तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ कदापि ना करूंगा । तुम्हारा अभीष्ट वर जो तुम्हें पसंद है, उन्ही सदाशिव के साथ करूंगा , तुम मेरे पर अति प्रसन्न हो सहेली के साथ नगर में उपस्थित होकर अपनी माता एवं सहेलियों से मिलती हुई घर पहुंची। कुछ समय बाद शुभ मुहूर्त में तुम्हारा विवाह वेद विधि के साथ महाराज हिमांचल व महारानी मैं ने मेरे साथ कर पुण्य का अर्जन किया। हे सौभाग्यशालानी ! जिस सहेली ने तुमको हरण
एक समय की बात है महर्षि द्वैपायन व्यास जी हस्तिनापुर आए । उनका आगमन सुनकर समस्त राजकुल के कर्मचारी महाराज भीष्म सहित उनका सम्मान आदर करते हुए राजमहल में महाराज को सोने के सिंहासन में विराजमान कर अधर्य – पाद्य आचमन से उनका पूजन किया । व्यास जी के विश्राम होने पर राजा रानी गांधारी ने माता कुंती से हाथ जोड़कर प्रश्न किया की है महाराज आप त्रिकालदर्शी हैं । आपको सभी की जानकारी है आपसे हमारी प्रार्थना है कि स्त्रियों को कोई ऐसा व्रत पूजन बताइए जिससे हमारे राज्य लक्ष्मी सुख, पुत्र परिवार सदा सुखी रहे इतना सुनकर व्यास जी ने कहा हम ऐसे व्रत का उल्लेख कर रहे हैं जिससे सदा लक्ष्मी जी स्थिर होकर आपको सुख प्रदान करेंगे यह श्री महालक्ष्मी जी का व्रत है जिसे 16 दिन तक किया जाता है जिसका पूजन प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण पक्ष की अष्टमी का माना जाता है तब राजा रानी गांधारी ने कहा महात्मा यह व्रत कैसे प्रारंभ किया जाता है इसका विधान क्या है विस्तार से हमें बताने की कृपा करें महर्षि जी ने कहा भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन सुबह मन में व्रत का पालन करें संकल्प लेकर किसी जलाशय में जाकर स्नान करके वस्त्र स्वच्छ वस्त्र या नए व्यस्त धारण कर सकते हैं दूर्वा से महालक्ष्मी जी को जल का तर्पण करके प्रणाम करना चाहिए फिर घर आकर शुद्ध 16 धागों वाले धागे का एक धागा बनाकर प्रतिदिन एक गांठ लगानी चाहिए इस 16 दिन की 16 गांठ का एक धागा तैयार कर अश्वनी माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखकर मंडप बनाकर चंदोबा तान कर उसके नीचे माटी के हाथी पर महालक्ष्मी माता की मूर्ति स्थापित कर तरह तरह के पुष्प माला से लक्ष्मी जी व हाथी का पूजन करें व तरह तरह के पकवान बना सकते हैं लक्ष्मी जी और हाथी का पूजन नैवेद्य समर्पण करके करना चाहिए ।श्रद्धा सहित महालक्ष्मी व्रत करने से आप लोगों की राजलक्ष्मी सदा स्थिर रहेगी, ऐसा विधान बताकर व्यास जी अपने आश्रम को चले गए। इधर समय के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से समस्त राजघराने में नारियों व नगर स्त्रियों ने महालक्ष्मी जी का व्रत प्रारंभ कर दिया बहुत सी नारी ने गांधारी के साथ प्रतिष्ठा पाने हेतु व्रत का साथ देने लगी । कुछ नारियां माता कुंती के साथ भी व्रत आरंभ करने लगी । पर, गांधारी जी द्वारा कुछ द्वेष भाव चलने लगा ऐसा होते-होते 15 दिन व्रत के समाप्त होकर 16वा दिन अश्वनी कृष्ण पक्ष की अष्टमी आ गई उस दिन प्रात काल से नर नारियों ने उत्सव मनाना आरंभ कर दिया और समस्त नर नारी राजमहल में गांधारी जी के यहां उपस्थित हो तरह-तरह से महालक्ष्मी जी के मंडप व माटी के हाथी बनाने सजाने की तैयारी करने लगे। गांधारी जी ने नगर की सभी प्रतिष्ठित नारियों को बुलाने को सेवक भेजा ,पर माता कुंती को नहीं बुलवाया और ना कोई सूचना भेजी । उत्सव में बाजे गाजे की धुन बजने लगी जिससे सारे हस्तिनापुर में खुशी की लहर दौड़ गई । माता कुंती ने इसे अपना अपमान समझकर बड़ा रंज बनाया और व्रत की कोई तैयारी नहीं ।कि इतने में महाराज युधिष्ठिर ,अर्जुन ,भीम सेन, नकुल ,सहदेव सहित पांचो पांडव उपस्थित हो गए ,तब अपनी माता को गंभीर देख अर्जुन ने प्रार्थना की- माता आप इतने दुखी क्यों हो ? क्या हम आपके दुख का कारण समझ सकते हैं और दुख दूर करने में भी सहायक हो सकते हैं ? आप बताएं – तब माता कुंती ने कहा -बेटा कुल में अपमान ( रिश्तेदारों द्वारा किया अपमान) से बढ़कर कोई दुख नहीं है आज नगर में महालक्ष्मी व्रत उत्सव में रानी गांधारी ने सारे नगर की औरतों को सम्मान से बुलाकर ईर्ष्या पूर्वक मेरा अपमान कर उत्सव में मुझे नहीं बुलाया है पार्थ ने कहा माता क्या वह पूजा का विधान सिर्फ दुर्योधन के महल में ही हो सकता है ,आप अपने घर में नहीं कर सकती ? तब कुंती ने कहा बेटा कर सकती हूं पर साज-समान इतनी जल्दी तैयार नहीं हो पाएगा,क्योंकि गांधारी के सौ पुत्रों ने माटी का विशाल हाथी तैयार किया है और पूजन करके सजाया है ऐसा विधान तुमसे ना बन सकेगा उनके उत्सव की तैयारी आज दिन भर से हो रही है तब पार्थ ने कहा माता आप पूजन की तैयारी कर नगर में बुलावा भेजे । मैं ऐसा हाथी पूजन में लेकर आऊंगा की हस्तिनापुर वासियों ने नहीं देखा होगा ना ही उसका कभी पूजन किया होगामैं आज ही इंद्रलोक से इंद्र का हाथी ऐरावत जो बहुत ही पूजनीय है उसे बुलाकर लेकर आता हूं आप अपनी तैयारी करें फिर इधर भी माता कुंती ने सारे नगर में पूजा का ढिंढोरा पिटवा दिया पूजा की विशाल तैयारी होने लगी तब अर्जुन ने सुरपति को एरावत भेजने को पत्र लिखा और एक दिव्य बाण में बांधकर धनुष पर रखकर देवलोक इंद्र की सभा में फेंका बाण से इंद्र ने पत्र निकाल कर पड़ा तो अर्जुन को लिखा की है पांडु कुमार ऐरावत भेज तो दूंगा पर इतनी जल्दी स्वर्ग से कैसे उतर सकता है तुम इसका उत्तर शीघ्र लिखो पत्र पाकर अर्जुन ने बाणो का रास्ता बनाकर हाथी के उतरने की बात लिखकर पत्र वापस कर दिया इंद्र ने सारथी को आज्ञा दी के हाथी को पूर्ण रूप से सजाकर हस्तिनापुर में उतारने का प्रबंध करो महावत ने तरह-तरह के साज समान से ऐरावत को सजाया देवलोक की अंबरझूल डाली गई स्वर्ण की पालकी रत्न जड़ित कलशों से बांधी गई, माथे पर रत्न जड़ित जाली सजाई गई, पैरों में घुंघरू सोने की मड़िया बांधी गई जिनकी चका चौंध पर मानव जाति की आंखें नहीं ठहर सकती थी https://youtu.be/s7X1DVR17vQ इधर सारे नगर में धूम हुई की कुंती माता के घर सजीव इंद्र का ऐरावत बाणों के रास्ते पर स्वर्ग से उतरकर पूजा जाएगा सारे नगर के नर नारी बालक और वृद्धों की भीड़ एरावत को देखने एकत्रित होने लगी गांधारी के राजमहल में भी इस बात की चर्चा फैल गई नगर की नारियां पूजा थाली लेकर भागने लगी माता कुंती के महल में उपस्थित होने लगी देखते ही देखते सारा महल पूजन करने वाली नारियों से भर गया सारे नगर
DIPAWALI PAR BHAGWAN KUBER KI POOJA दिपावली के दिन भगवान कुबेर की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। कुबेर को मां लक्ष्मी के धन का प्रतिनिधि माना जाता है।इसलिए बिना कुबेर जी की पूजा के आपको मां लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त नहीं हो सकता। धन के देवता कुबेर जी की पूजा के बिनाधन की देवी लक्ष्मी जी की प्राप्ति नहीं की जा सकती। भगवान कुबेर माता लक्ष्मी जी के सेवक हैं और माता लक्ष्मी अपने सेवक के बिनाकहीं भी भ्रमण नहीं करती। दिपावली पर भगवान कुबेर की पूजा ….जानिए भगवान कुबेर पूजा की सही विधि DIPAWALI PAR BHAGWAN KUBER KI POOJA KE MAHATV जब आप भगवान कुबेर की पूजा करेंगे तो वह माता लक्ष्मी जी से आपके घर जाने का आग्रह करेगे औरलक्ष्मी माता अपने सेवक का आग्रह कभी नहीं टालतीं, इसलिए कुबेर की पूजा धनतेरस और दिवाली के दिन मुख्य रूप से की जाती है।दिपावली के अलावा कुबेर जी की पूजा धनतेरस के दिन भी की जाती है। जिससे घर में धन का भण्डार हमेशा ही भरा रहे। बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लाभhttps://shrimahalakshmiratnakendra.com/?p=2154 भगवान कुबेर को आभूषणों का देवता भी माना जाता है। इसके अलावा अगर आप धन संबंधी परेशानियों से घिरे हुए हैं तो आप इस दिन कुबेर जी का पूजनकरके धन संबंधी परेशानियों को दूर कर सकते हैं।धनतेरस के दिन विशेष रुप से खरीदारी करने की प्रथा है। इस दिन लोग अपने-अपने घरोंके लिए बर्तन,सोना-चांदी और अन्य उपयोगी चीजें खरीदते हैं। कहा जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी ने धन संबंधी कार्यों का लेखा-जोखाभगवान कुबेर को सौंप रखा है जो स्वंय धनों के देवता कहे जाते हैं इसलिए धनतेरस के दिन धन प्राप्ति और लाभ पाने के लिए भगवानकुबेर की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है इसलिए धनतेरस की रात को माता लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर की पूजा भी करनी चाहिए। भगवान कुबेर की पूजा विधि..BHAGWAN KUBER POOJA VIDHI भगवान कुबेर की पूजा धनतेरस और दिपावली के दिन की जाती है। दिवाली के दिन आपको शाम को भगवान गणेश और मां लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।..इसके लिए आप एक साफ चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें। इसके बाद उस पर एक लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर भी गंगाजल छिड़कें।..इसके बाद उस चौकी पर अक्षत डालें और भगवान गणेश मां लक्ष्मी और भगवान कुबरे की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।..प्रतिमा स्थापित करने के बाद अपने आभूषण, पैसे और सभी कीमती चीजें भगवान कुबेर के आगे रखें।..इसके बाद अगर आभूषण के डिब्बे पर स्वास्तिक बनाएं या फिर स्वास्तिक बनाकर अपने सभी पैसे और आभूषण उस पर रखें।..इसके बाद भगवान कुबेर का तिलक करें और कुबेर जी के साथ- साथ सभी आभूषण और पैसों को अक्षत अर्पित करें। धनतेरस पर जानिए धन के देवता भगवान कुबेर की कथा,पूर्वजन्म में क्यों थे वह एक चोर..इसके बाद भगवान कुबेर को फल और फूल, माला अर्पित करें और आभूषण और पैसों पर भी फूल अर्पित करें।..इसके बाद कुबेर त्वं धनाधीश गृहे ते कमला स्थिता।तां देवीं प्रेषयाशु त्वं मद्गृहे ते नमो नम:।। मंत्र का जाप करें।..मंत्र जाप के बाद भगवान कुबेर को मिठाई का भोग लगाएं।..इसके बाद भगवान कुबरे की धूप व दीप से आरती उतारें।..इसके बाद एक साफ गिलास में जल लेकर भगवान कुबेर को जल अर्पित करें।..अंत में भगवान कुबेर को हाथ जोड़कर नमन करें और उनसे जाने अनजाने में हुईभूल के क्षमा प्रार्थना करें और उनसे अपना अर्शीवाद सदा बनाने के लिए भी प्रार्थना करें।
14 MUKHI RUDRAKSHA इसे स्वयं शिव का स्वरूप कहा जाता है जो समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है। शास्त्रों में इस मनका को देवमणि या महाशनि के रूप में माना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसका निर्माण भगवान शिव की तीसरी आंख से गिरे अश्रु से हुआ था। जिस तरह भगवान शिव की तीसरी आंख खुलने सेसभी बुरी शक्तियों का नाश हो जाता है वैसे ही इस रुद्राक्ष को पहनने वाले के जीवन में सभी नकारात्मक शक्तियां खत्म हो जाती हैं।यह रुद्राक्ष सहज दिमाग पर काम करता है ताकि व्यक्ति सही निर्णय ले सके। यह जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त करने में मदद करता है। 14 MUKHI RUDRAKSHA इसका मंत्र है इसका मंत्र है ॐ नम:। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्यशिव के समान पवित्र हो जाता है. यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय रुद्राक्ष है। यह हनुमान जी का स्वरूप है। धारण करने वाले को परमपद प्राप्त होता है।हमारा वर्तमान जीवन हमारे पिछले जन्म के कर्मों से जुड़ा हुआ है और ग्रहों की चाल से भी प्रभावित है। यह कहा जाता है कि कुछ लोग अपनेपिछले जन्म के कर्मों का भुगतान वर्तमान में करते हैं। जिसके कारण उन्हें वर्तमान जीवन को बेहतर बनाने के लिए बहुत कठिनाई और समस्याओं कासामना करना पड़ता है। तारा रानी की कहानी https://shrimahalakshmiratnakendra.com/?p=2200 इसलिए, 14 मुखी रुद्राक्ष पहनने से पिछले कर्मों का ध्यान रखा जाता है और इसे सही माना जाता है ताकि आप अपनेवर्तमान जीवन पर ध्यान केंद्रित कर सकें और एक सुखद और सुंदर भविष्य बना सकें। इस रुद्राक्ष पर शनि और मंगल ग्रह की कृपा होती है।यदि आपकी कुंडली में शनि या मंगल कमजोर हैं तो आप 14 मुखी रुद्राक्ष को धारणकर उनके दुष्प्रभाव को दूर कर सकते हैं।सिंह राशि वाले इसको धारण करें, तो उत्तम रहेगा।
13 MUKHI RUDRAKSH तेरह मुखी रुद्राक्ष व्यापक रूप से सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाना जाता है।विश्वदेव के स्वरूप में देखे जाने वाले इस रुद्राक्ष को पहनने वाले लोगों का सौभाग्य चमकने लगता है।इसे धारण करने से पहले ॐ ह्रीं नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इस रुद्राक्ष को भगवान कामदेव काआशीर्वाद प्राप्त है, जो पहनने वाले को दैवीय करिश्मा और अपार शक्ति प्रदान करता है। इसे भगवान इंद्रऔर महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त है जो व्यक्ति को अभिव्यक्त करता है। यह शुक्र और चंद्रमा दोनों द्वाराशासित है और इस मनके की सतह पर 13 प्राकृतिक रेखाएं होती हैं। 13 MUKHI RUDRAKSH BENIFIT’S यह उन व्यवसायों के लोगों के लिएअच्छा है जहाँ उन्हें लोगों को आकर्षित करने और उनसे लाभ लेने की आवश्यकता होती है।इस रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति भाग्यशाली बन सकता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष से धन लाभ होता है।यह समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। निः संतान को संतान तथा सभी कार्यों मेंसफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है।यह समस्त शक्ति तथा ऋद्धि-सिद्धि का दाता है। यह कार्य सिद्धि प्रदायक तथा मंगलदायी है। https://youtu.be/xsqg5sYyE14
BARAH MUKHI RUDRAKSH DHARAN KARNE KE LABH बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लाभ ;- शिव का अवतार माना जाने वाले इस बारह मुखी रुद्राक्ष में सूर्य का आधिपत्य है और सूर्य को सभी ग्रहों का स्वामी कहा जाता है।इस रुद्राक्ष की सतह पर 12 प्राकृतिक रेखाएं हैं जो इसकी मौलिकता को चिन्हित करती हैं। इस मनका को धारण करने से व्यापार और नौकरी संबंधित समस्याओं से निजात मिल सकती है। बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लाभ BARAH MUKHI RUDRAKSH DHARAN KARNE KE LABH….. अगर आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह कमजोर है तो आपको जल्द से जल्द 12 मुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए। 12 मुखी रुद्राक्ष को द्वादशी आदित्य के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है किइस मनके में ऋष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का भी आशीर्वाद है। मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर आस्था का चमत्कारी धामhttps://shrimahalakshmiratnakendra.com/?p=2395 इस रुद्राक्ष को बालों में पहना जाता है। इसे धारण करने का मंत्र है ऊँ क्रौं क्षौं रौं नम:। जो लोग बाहरमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं, उन्हें बारह आदित्यों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। बारह मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से बालों में धारण करना चाहिए। बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। इसे धारण करने से दोनों लोकों का सुख प्राप्त होता है तथा व्यक्ति भाग्यवान होता है। यह नेत्र ज्योति में वृद्धि करता है। यह बुद्धि तथा स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान दिलाता है। दरिद्रता का नाश होता है। बढ़ता है मनोबल। सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैेे तथा असीम तेज एवं बल की प्राप्ति होती है।
शिवपुराण के अनुसार ग्यारहमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के अवतार रुद्रदेव का रूप है।इस रुद्राक्ष को साक्षात रूद्रदे का अवतार माना जाता है। यह भगवान हनुमान का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें भगवान शिव का 11वां अवतार भी माना जाता है।जो व्यक्ति इस रुद्राक्ष को धारण करता है, वह सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करता है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए इसे पहनना चाहिए। इसका मंत्र है ॐ ह्रीं हुम नम:।जो इसे शिखा में धारण करता है, उसे कई हजार यज्ञ कराने का फल मिलता है. इसे शिखा में बांधकर धारण करने से हजार अश्वमेध यज्ञ तथा ग्रहण में दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है।इसे धारण करने से समस्त सुखों में वृद्धि होती है। यह विजय दिलाने वाला तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला है।यह व्यक्ति से डर को दूर करने में मदद करता है दीर्घायु व वैवाहिक जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है।विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों तथा विकारों में यह लाभकारी है तथा जिस स्त्री को संतान प्राप्ति नहीं होती हैइसे विश्वास पूर्वक धारण करने से बंध्या स्त्री को भी सकती है संतान प्राप्त हो।यह व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता हैयह लोगों के गुस्से को प्रबंधित करने और शांत रहने में मदद करता हैइसे धारण करने से बल व तेज में वृद्धि होती है।मकर व कुंभ राशि के व्यक्ति इसे धारण कर जीवन-पर्यंत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
इसे विष्णु का स्वरूप माना जाता है। दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु तथा दसमहाविद्या का निवास माना गया है।दस मुखी रुद्राक्ष भगवान विष्णु का आशीर्वाद है, जो त्रिमूर्ति देवताओं का अंश है, जिन्हें ब्रह्मांड का निर्माता कहा जाता है। इस रुद्राक्ष की सतह पर ऊपर से नीचे तक 10 प्राकृतिक ऊर्ध्वाधऱ रेखाएं होती हैं। यह दुर्लभ किस्म का रुद्राक्ष है हालांकि इस रुद्राक्ष के पास कोई सत्तारूढ़ ग्रह नहीं हैं, क्योंकि यह मानव जीवन पर सभी ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने की दिशा में काम करता है।हर प्रकार की खुशियों को पाने की चाह रखने वाले लोगों को इस रुद्राक्ष को पहनना चाहिए जिसका मंत्र है ॐ ह्रीं नम:। जो लोग अपनी सभी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं, वे दसमुखी रुद्राक्ष पहन सकते हैं। इसे धारण करने पर प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है।यह एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये जाते हैं।यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है। जादू-टोने के प्रभाव से यह बचाव करता है।‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से पूर्व इसे प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य कर लेना चाहिए।मानसिक शांति, भाग्योदय तथा स्वास्थ्य का यह अनमोल खजाना है। सर्वग्रह इसके प्रभाव से शांत रहते हैं।मकर तथा कुंभ राशि वाले जातकों को इसे प्राण-प्रतिषिठत कर धारण करना चाहिए।
इस रुद्राक्ष को नौ देवियों का स्वरूप कहा जाता है। यह रुद्राक्ष महाशक्ति के नौ रूपों का प्रतीक है। जो लोग नौमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं, वे सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं।यह माँ शक्ति का पंसदीदा रुद्र मनका भी है और नवमुखी रुद्राक्ष नवशक्ति संपन्न मां दुर्गा का प्रतिनिधि है। इस रुद्राक्ष पर कपिलमुनि और भैरो देव की कृपा बरसती रहती है। यह विशेष रूप से एक सुरक्षा कवच के रूप में पहना जाता है, जिस पहनने से सभी प्रकार की बुरी संपत्ति, काला जादू और नकारात्मकता से बचाता है। यह पहनने वाले को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करता है। 9 मुखी रुद्राक्ष का अधिपति ग्रह केतु है। इसे धारण करने वाले लोगों को समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। समाज में प्रतिष्ठा की चाह रखने वाले लोगों को नौ मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।इसका मंत्र है- ऊँ ह्रीं हुं नम:। इस मंत्र के साथ यह रुद्राक्ष धारण करें।केतु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। ज्वर, नेत्र, उदर, फोड़े, फुंसी आदि रोगों में इसे धारण करने से अनुकूल लाभ मिलता है।यह केतु और राहु ग्रह के क्रूर प्रभाव को दूर करने में मदद करता है। इसे धारण करने से केतु जनित दोष कम होते हैं। यह लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को प्रदान करता है।धर्म-कर्म, अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है।मकर एवं कुंभ राशि वालों को इसे धारण करना चाहिए।
इस रुद्राक्ष को प्रथम पूज्य भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है। भगवान गणेश माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं, यह बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हैं। इसे धारण करने से भैरव बाबा की भी कृपा प्राप्त होती है। शिवपुराण के अनुसार अष्टमुखी रुद्राक्ष भैरव महाराज का रूप माना जाता है।जो लोग इस रुद्राक्ष को धारण करते हैं, वे अकाल मृत्यु से शरीर का त्याग नहीं करते हैं। ऐसे लोग पूर्ण आयु जीते हैं।वे लोग जो रोग मुक्त जीवन जीना चाहते हैं उनके लिए आठ मुखी रुद्राक्ष एकदम उपयुक्त है। इस रुद्राक्ष के लिए मंत्र है ॐ हुम नम:।आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश और गंगा का अधिवास माना जाता है। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए। मोतियाविंद, फेफड़े के रोग, पैरों में कष्ट, चर्म रोग आदि रोगों तथा राहु की पीड़ा से यह छुटकारा दिलाने में सहायक है।इसकी तुलना गोमेद से की जाती है। आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भुजा देवी का स्वरूप है। यह हर प्रकार के विघ्नों को दूर करता है।यह पहनने वाले में ज्ञान और जागरूकता बढ़ाता हैयह रुद्राक्षधारी को मजबूत बनाता है और उसे जीवन में चुनौतियों का सामना करने और उनसे निपटने में सक्षम बनाता हैयह पहनने वाले के जीवन में सफलता लाने में मदद करता हैयह पहनने वाले को ऊर्जावान बनाता है और जीवन से नीरसता को दूर करता है इसे धारण करने वाले को अरिष्ट से मुक्ति मिलती है। इसे सिद्ध कर धारण करने से पितृदोष दूर होता है।मकर और कुंभ राशि वालों के लिए यह अनुकूल है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ व मीन लग्न वाले इससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
सात मुखी रुद्राक्ष को अनंग बताया गया है वे लोग जिन्हें अत्याधिक धन की हानि हुई है और उनके पास इससे उबरने का कोई तरीका नहीं है, उन्हें इस रुद्राक्ष को पहनना चाहिए।इसमें अन्य रूपों के विपरीत भगवान शिव के अनंग रूप को दर्शाया गया है। यह मनका सप्तमातृकाओं द्वारा और धन की देवी मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से युक्त होता है, जो इसे और भी अधिक शक्तिशाली और लाभों से युक्त बनाता है। सातमुखी रुद्राक्ष का अधिपति ग्रह शनि है, जो अनुशासन और कर्मों पर गहरी नजर रखता है।इसे धारण करने से पहले ऊँ हुं नम: का जाप करना चाहिए। जो लोग गरीबी से मुक्ति चाहते हैं |इस रुद्राक्ष को धारण करने से गरीब व्यक्ति धनवान बन सकता है। इसका मंत्र है- ऊँ हुं नम:। इस मंत्र के साथ यह रुद्राक्ष धारण करें।इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व हनुमानजी हैं। यह शनि ग्रह द्वारा संचालित है।सातमुखी रुद्राक्ष में 7 दिव्य सर्प निवास करते हैं जो इसे धारण करने वाले को अपार शक्ति से जोड़ता है।यह शनि के क्रूर प्रभाव को कम करता है जो खुशी और विकास को प्रतिबंधित करता हैइसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह लाभकारी है।इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है।यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए।इसे धारण करने वाले की दरिद्रता दूर होती है तथा यह आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि करता है।इसे धारण करने वाला प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ ले सकते हैं। The 7 Mukhi Rudraksha, also known as the “Ananta” Rudraksha, is believed to bring prosperity, good health, and protection from negative energies. It is associated with the goddess Mahalakshmi, making it a popular choice for those seeking financial stability and abundance. The 7 Mukhi Rudraksha is also believed to help balance and harmonize the effects of the planet Saturn, potentially overcoming challenges and obstacles. Key Benefits:
इस रुद्राक्ष को कार्तिकेय का रूप कहा जाता है। इसे समस्या के समाधान रुद्राक्ष रूप में माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति को सभी परेशान स्थितियों से बाहर निकालता है। यह भगवान कार्तिकेय द्वारा शासित है जो भगवान शिव और पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र हैं।वे लोग जो इसे धारण करते हैं उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलती है। इसे धारण करने का मंत्र है ॐ ह्रीं हुम नम:।इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन ‘ऊँ ह्रीं हु्रं नमः’ मंत्र का एक माला जप करें।इसे प्राण प्रतिष्ठित कर धारण करना चाहिए तथा धारण के समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए।इसके गुणों की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं भुजा में धारण किया जाता है।शुक्र ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य धारण करना चाहिए। नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रियों, पुरुषार्थ,काम-वासना संबंधित व्याधियों में यह अनुकूल फल प्रदान करता है।यह मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को मजबूत करने में मदद करता हैइसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते हैं। गले में इसकी माला पहनना अति उत्तम है।कार्तिकेय तथा गणेश का स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने वाले पर माँ पार्वती की कृपा होती है।आरोग्यता तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए वृष व तुला राशि तथा मिथुन, कन्या, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक इसे धारण कर लाभ उठा सकते हैं।
पंचमुखी रुद्राक्ष को स्वयं रुद्र कालाग्नि के समान बताया गया है. इसे धारण करने से शांत व संतोष की प्राप्ति होती है |पांच मुखी रुद्राक्ष सभी रुद्राक्षों में से सबसे लोकप्रिय रुद्राक्ष है। यह रुद्राक्ष समृद्धि और जीवन में सफलता का प्रतीक हैवे लोग जो अपनी हर परेशानी से छुटकारा पाना चाहते हैं उन्हें पांच मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।जिन भक्तों को सभी परेशानियों से मुक्ति चाहिए और मनोवांछित फल प्राप्त करने की इच्छा है, उन्हें पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।इसका मंत्र है ऊँ ह्रीं नम:। सोमवार की सुबह मंत्र एक माला जप कर, इसे काले धागे में विधि पूर्वक धारण करना चाहिए।यह रुद्राक्ष सभी प्रकार के पापों के प्रभाव को भी कम करता है।बृहस्पति ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसको धारण करना चाहिए।इसे धारण करने से निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों का निवारण होता है।पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। इसमें पुखराज के समान गुण होते हैं।यह हृदय रोगियों के लिए उत्तम है। इससे आत्मिक विश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति आसक्ति बढ़ती है।पंचमुखी रुद्राक्ष को आप घर या कार्यालय में भी रख सकते हैं ताकि वातावरण में नकारात्मकता को दूर किया जा सके।यह भगवान शिव के 5 रुपों का प्रतीक है। हिंदू वेद मानव को 5 तत्वों से बना मानते हैं-अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वीजिसके साथ ब्रह्मांड बना है। 5 मुखी रुद्राक्ष पहनने से इस सभी तत्वों का शरीर में नियंत्रण रहता है।मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन वाले जातक इसे धारण कर सकते हैं।
रुद्राक्षों में चार मुखी रुद्राक्ष सबसे महत्वपूर्ण रुद्राक्ष है,इस रुद्राक्ष को ब्रह्मा का स्वरूप कहा जाता है।इसे धारण करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने का मंत्र है ऊँ ह्रीं नम:।यह रुद्राक्ष चार वर्ण, चार आश्रम यानि ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास के द्वारा पूजित और परम वंदनीय है। इस रुद्राक्ष का अधिपति ग्रह बुध है, जिस कारण यह आपको शिक्षा के क्षेत्र में सफलता दिलाने में, बुध के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा पाने के लिए उत्तम है।बुध ग्रह की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए इसे धारण करना चाहिए। मानसिक रोग, पक्षाघात, पीत ज्वर, दमा तथा नासिका संबंधित रोगों के निदान हेतु इसे धारण करना चाहिए।चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने से वाणी में मधुरता, आरोग्य तथा तेजस्विता की प्राप्ति होती है। इसमें पन्ना रत्न के समान गुण हैं।सेहत, ज्ञान, बुद्धि तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक है। इसे चारों वेदों का रूप माना गया है तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल देने वाला है।इसे धारण करने से सांसारिक दुःखों, शारीरिक, मानसिक, दैविक कष्टों तथा ग्रहों के कारण उत्पन्न बाधाओं से छुटकारा मिलता है।इस रुद्राक्ष का एक मुख्य लाभ यह है कि यह संचार को बढ़ाता है| यह उन लोगों के बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता ह जो बौद्धिक रूप से सुस्त हैं|यह पहनने वाले को आत्मविश्वास औऱ रचनात्मकता प्राप्त करने में मदद करता हैइस रुद्राक्ष को धारण करने से धारक को जीव हत्या के पाप से मुक्ति भी मिल जाती हैवृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुंभ लग्न के जातकों को इसे धारण करना चाहिए। सोमवार को यह मंत्र 108 बार जपकर धारण करें।
तीन मुखी रुद्राक्ष को अनल (अग्नि) के समान बताया गया है |शिवपुराण के अनुसार तीन मुखी रुद्राक्ष कठिन साधाना के बराबर फल देने वाला बताया गया है। जिन लोगों को विद्या प्राप्ति की अभिलाषा है |व्यक्ति की हर इच्छा को पूरा करने का सबसे तेज माध्यम है तीन मुखी रुद्राक्ष। इसे पहनने से जल्दी से जल्दी इच्छा पूरी होती है।इसे पहनते समय ऊँ क्लीं नम: का जाप करना चाहिए। इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें।मंगल इसका अधिपति ग्रह है। मंगल ग्रह निवारण हेतु इसे धारण किया जाता है की प्रतिकूलता के। यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली है।मंगल को लाल रक्त कण, गुर्दा, ग्रीवा, जननेन्द्रियों का कारक ग्रह माना गया है।अतः तीन मुखी रुद्राक्ष को ब्लडप्रेशर, चेचक, बवासीर, रक्ताल्पता, हैजा, मासिक धर्म संबंधित रोगों के निवारण हेतु धारण करना चाहिए।इसके धारण करने से श्री, तेज एवं आत्मबल मिलता है। यह सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ फल देने वाला है।इसे धारण करने से दरिद्रता दूर होती है तथा पढ़ाई व व्यापार संबंधित प्रतिस्पर्धा में सफलता मिलती है।तीन मुखी रुद्राक्ष मुख्य रूप से स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए काम करता है। यह अग्निदेव का स्वरूप माना गया है।अग्नि देव कठोर वैदिक देवता हैं, जो उग्र और शक्तिशाली हैं। 3 मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले के आस-पास की नकारात्मकऊर्जा को जला देता है और व्यक्ति के बुरे कर्म को नष्ट कर देता है, जिसेस व्यक्ति अपराध मुक्त और तनाव मुक्त हो जाता है।मेष, सिंह, धनु राशि वाले तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन लग्न के जातकों को इसे अवश्य धारण करना चाहिए।इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं।
दो मुखी रुद्राक्ष शिव पार्वती रूप है, प्राचीन पौराणिक कथानुसार, भगवान ब्रह्मा ने दोनों देवताओं को इतना करीब आने काआशीर्वाद दिया कि वे शिव-पार्वती एक दूसरे में ही विलीन हो गए और उन्हें अर्धनारीश्वर कहा जाने लगा। जो इच्छित फल देता है।शिव का यह रुद्राक्ष हर इच्छा पूरी करता है।दोमुखी रुद्राक्ष को देवदेवेश्वर कहा गया है। सभी प्रकार की मनोकामनाओंकी पूर्ति के लिए इसे धारण करना चाहिए। प्राचीन पौराणिक कथानुसार, भगवान ब्रह्मा ने दोनों देवताओं को इतनाकरीब आने का आशीर्वाद दिया कि वे शिव-पार्वती एक दूसरे में ही विलीन हो गए और उन्हें अर्धनारीश्वर कहा जाने लगा।यह चंद्रमा के कारण उत्पन्न प्रतिकूलता के लिए धारण किया जाता है।इसे धारण करते समय ॐ नम: का जाप करना चहिए।जिन लोगों को अनिद्रा की शिकायत है उन्हे दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिएहृदय, फेफड़ों, मस्तिष्क, गुर्दों तथा नेत्र रोगों में इसे धारण करने पर लाभ पहुंचता है। यह ध्यान लगाने में सहायक है।यह पहनने वाले के अन्तर्मन को ठीक करता है और सदैव पित्त को शांत रखता हैउसकी ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है दूर होती हैं।इसे धारण करने से सौहार्द्र लक्ष्मी का वास रहता है। इससे भगवान अर्द्धनारीश्वर प्रसन्न होते हैं।इसे इस्त्रियों के लिए उपयोगी माना गया है। संतान जन्म, गर्भ रक्षा तथा मिर्गी रोग के लिए उपयोगी माना गया है।यह पहनने वाले के अन्तर्मन को ठीक करता है और सदैव पित्त को शांत रखता हैधनु व कन्या राशि वाले तथा कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न वालों के लिए इसे धारण करना लाभप्रद होता है।
भगवान शिव का रुद्राक्ष हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। यह रुद्राक्ष सफलता, धन-संपत्ति, मान-सम्मान दिलाता है। भगवान शिव ने समस्त लोगों के कल्याण के लिए अपने नेत्रों से आंसू के रूप में रुद्राक्ष उत्पन्न किए। उनकी आंख से गिरे पहले आंसू को एक मुखी रुद्राक्ष कहा जाता है।एक मुखी रुद्राक्ष सबसे महत्वपूर्ण और कल्याणकारी रुद्राक्ष माना जाता है। एक मुखी को साक्षात भगवान शिव का स्वरुप मानते हैं। एक मुखी दो प्रकार के दाने पर इस धरती पर पाए गए हैं। एक गोल आकार में है और दूसरा काजू के आकार में।कहा जाता है कि एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है और मन शांत हो जाता है। घर में धन का आगमन भी होने लगता है। शरीर में हाई ‘बीपी’ इसके धारण करने से धीरे-धीरे नियंत्रित होने लगता है। वहीं शत्रु अपनी शत्रुता छोड़ देता है। एक मुखी रुद्राक्ष साधकों के मन में अकारण जो भय बना रहता है उसे दूर करता है एक मुखी रुद्राक्ष इतना पवित्र और पावन माना गया है की गरुड पुराण की कथा में आता है कि एक रुद्राक्ष के वृक्ष में वर्ष में सिर्फ एक ही एक मुखी रुद्राक्ष आता है जो कि बहुत ही पवित्र होता है एक मुखी रुद्राक्ष सभी मनुष्यों के भाग्य में नहीं होता यह भाग्य अनुसार ही प्राप्त होता है इसीलिए यह दुर्लभ है एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने की विधि एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने के लिए इसे दूध दही गंगाजल घी शहद मिलाकर बनाए पंचामृत से स्नान कराना चाहिए इसके लिए एक मुखी रुद्राक्ष को शिवलिंग के ऊपर रखकर ऊपर से पंचामृत चढ़ाना चाहिए जो एक मुखी रुद्राक्ष से होता हुआ शिवलिंग पर से बह जाए और ओम नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए इसके बाद इसे सोमवार के दिन पूर्व दिशा में मुंह करके सुबह 9:00 बजे से पहले पहले धारण कर लेना चाहिए एक मुखी रुद्राक्ष को जब भी किसी बड़े शिव मंदिर में जाएं तो शिवलिंग से छूकर लाना चाहिए इससे इसकी शक्ति बढ़ती जाती है एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने के बाद शौचालय नहीं जाना चाहिए शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए ऐसे व्यक्तिगत कार्य करते समय उसे उतार देना चाहिए, यह एक मुखी रुद्राक्ष नया होता है जो हम दे रहे हैं इसीलिए इसे तीन से चार दिन सरसों के तेल में डुबोकर रख देना चाहिए इसके पश्चात इसे शुक्ल पक्ष के सोमवार के दिन धारण करना चाहिएएक मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्रदान करता है यह पहनने वाले की इच्छा को पूरा करता है यह रुद्राक्षधारी के पापों और पिछले कर्मों को नष्ट कर देता है यह कुछ दिनों में माइग्रेन को ठीक करने में मदद करता है यह मन की शांति पाने में मदद करता है यह एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करता है यह आपको अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखने में मदद करता है यह क्रूर ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में मदद करता है विशेष रूप से जन्म कुंडली में सूर्य के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए पहना जाता है यह पहनने वाले को महत्वाकांक्षी बनाता है जब घर में रखा जाता है तो यह पूरे परिवार में शांति और सद्भावना को पैदा करता है यह जीवन से जटिलताओं को दूर करता है यह गुस्से को नियंत्रित करने में मदद करता है रुद्राक्ष धारण करने वाले को नेतृत्व गुणों के साथ और तनाव को दूर करने में मदद मिलती है
राशि अनुसार रुद्राक्ष RASHI ANUSAR RUDRAKSH :- 1-मेष राशि का रुद्राक्ष RUDRAKSHA BENEFITSमेष राशि का स्वामी मंगल होता है और मंगल साहस और वीरता का कारक है। साथ ही मंगल के प्रभाव में जातक अडियल और गुस्सैल भी बन जाता है। मेष राशि के जातकों को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा। 2-वृषभ राशि का रुद्राक्षअपने लक्ष्य को पाने के लिए वृषभ राशि के लोग बहुत मेहनत करते हैं। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र देव हैं और ये भौतिक सुख और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। इस राशि के लोगों को 6 मुखी और दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है। राशि अनुसार रुद्राक्ष RASHI ANUSAR RUDRAKSH 3-मिथुन राशि का रुद्राक्षमिथुन राशि का स्वामी बुध है और बुध को बुद्धि का कारक माना जाता है। मिथुन राशि के लोग परिवर्तन और गतिशील स्वभाव के होते हैं। मिथुन राशि के जातकों को सफलता और धन की प्राप्ति के लिए 4 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। श्री गणेश और तुलसी की एक रोचक कथाhttps://shrimahalakshmiratnakendra.com/?p=2411 4-कर्क राशि का रुद्राक्षकर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होता है जोकि मन का कारक है। चंद्रमा मन को स्थिरता प्रदान करता है। ये लोग अपने कार्यों को पूरी निपुणता से करते हैं और इसीलिए इन्हें उसमें सफलता भी मिलती है। कर्क राशि के लोगों को 4 मुखी और गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा। 5- सिंह राशि का रुद्राक्षसिंह राशि का स्वामी सूर्य देव हैं। सूर्य को सफलता का कारक माना जाता है और जिस पर सूर्य देव की कृपा पड़ गई उसे जीवन में कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है। सिंह राशि के जातकों को 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 6-कन्या राशि का रुद्राक्षकन्या राशि का स्वामी भी बुध ग्रह है। बुध के शुभ प्रभाव में जातक बुद्धिमान बनता है और उसके द्वारा लिए गए सभी निर्णय सही साबित होते हैं। कन्या राशि के जातकों को गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से सबसे ज्यादा लाभ होता है। 7- तुला राशि का रुद्राक्षतुला राशि के लोग हर निर्णय से पूर्व बहुत सोच-विचार करते हैं। इस राशि का स्वामी शुक्र है जोकि जीवन में भौतिक सुख प्रदान करते हैं। तुला राशि के जातकों को सात मुखी रुद्राक्ष और गणेश रुद्राक्ष पहनने से सर्वसुख की प्राप्ति होगी। 8-वृश्चिक राशि का रुद्राक्षवृश्चिक राशि के लोग बहुत बुद्धिमान होते हैं। इस राशि का स्वामी मंगल ग्रह है जोकि बहुत आक्रामक माना जाता है लेकिन इस राशि के लोगों के स्वभाव में आक्रामकता कम ही देखने को मिलती है। वृश्चिक राशि के लोगों को 8 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। 9-धनु राशि का रुद्राक्षधनु राशि का स्वामी बृहस्पति है। इस राशि के लोग साहसी और उग्र स्वभाव के होते हैं। जीवन की विपत्तियों को टालने के लिए धनु राशि के जातकों को 9 मुखी और 1 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए। 10-मकर राशि का रुद्राक्षमकर राशि का स्वामी शनि देव हैं और कहते हैं कि जिस पर शनि देव की कृपा हो जाए उसके वारे न्यारे हो जाते हैं अर्थात् उसके सारे बिगड़े काम बन जाते हैं। मकर राशि के जातकों को अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए 13 और 10 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए। 11-कुंभ राशि का रुद्राक्षकुंभ राशि पर भी शनि देव की कृपा बरसती है। कुंभ राशि के लोग बहुत ऊंचे और बड़े सपने देखते हैं लेकिन ये उन सपनों को पूरा करने का दम भी रखते हैं। इस राशि के जातकों के लिए 7 मुखी रुद्राक्ष बहुत फायदेमंद रहता है। 12 -मीन राशि का रुद्राक्ष मीन राशि का स्वामी बृहस्पति है। इस राशि के जातकों का स्वास्थ्य अकसर खराब रहता है। मीन राशि के जातकों को 5 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
Navratri pooja नवरात्रि में वाममार्गी व दक्षिण मार्गी साधनाओं का अनुष्ठान किया जाता है और जिन लोगों के ऊपर तांत्रिक प्रयोग, काला जादू या जो भी आप समझते हैं का असर भी बड़ा जाता है नवरात्रि में ऐसे लोगों की मृत्यु भी होते देखी गई है जिनपर तांत्रिक प्रयोग किया गया है इसलिए आम जनता को नवरात्रि में अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए क्या ऐसा संभव नहीं है कि कोई भी व्यक्ति अपने घर के कुलदेवी कुलदेवता को प्रसन्न रखें और उनके घर के देवता उनकी रक्षा ना करें सभी के घर के देवी देवता इतने शक्तिशाली होते हैं कि वह अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा कर सकें लेकिन आज के समय में लोगों ने घर में पूजा पाठ की प्रक्रिया को बहुत छोटा कर दिया है पहले के समय में हर घर में हवन किए जाते थे हवन में जो आहुतियां दी जाती है वह सभी प्रकार के देवी-देवताओं के लिए होती है जो कि घर में उपस्थित सभी प्रकार के नकारात्मक शक्तियों को हवन में ही भस्म कर देते हैं और उनका बंधन कर कर ले जाते हैं लेकिन जिस तरह से आज सामान्य लोगों के घरों में सिर्फ तब हवन होता है जब सत्यनारायण भगवान की कथा हो रही हो वह भी तब जब कोई नया काम होता है कभी 5 साल में एक बार कभी 10 साल में एक बार इसी वजह से लोग परेशान रहते हैं घरों में नकारात्मकता भरी हुई है घरों में बहुत स्थान हैं नकारात्मक शक्तियों के रहने के लिए क्योंकि हवन होते ही नहीं हैं मंत्र जप और बाकी क्रियाकलाप बहुत कम हो गए हैं इसीलिए भारत के देशवासियों को हमारे धर्म के अनुसार वैदिक कार्य घर में स्वयं करना चाहिए और सीख लेना चाहिए कि किस तरह से घर में छोटे-छोटे हवन किए जा सकते हैं सभी व्रत उपवास को करना चाहिए नवरात्रि को मनाना चाहिए नवरात्रि कैसा समय होता है जब नकारात्मक शक्तियों के साथ सकारात्मक शक्तियां भी स्वतंत्र होकर विचरण करते हैं जब कोई साधक पूजा पाठ के साथ हवन करता है तो यह शक्तियां उससे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं और उसकी सहायता करती हैं इसीलिए साधकों को नवरात्रि में 24 घंटे में किसी भी समय मंत्र जप करना चाहिए भगवान के स्थान को सजाना चाहिए साफ-सुथरा करके सुगंधित धूप जलानी चाहिए भगवान के प्रसाद के लिए अलग से बर्तन रखना चाहिए और उन्हें भोग लगाना चाहिए इससे घर का वातावरण ही अलग हो जाता है और घर में शुभ घटनाएं होना शुरू हो जाते हैं जीवन में बहुत से कर्तव्य होते हैं जैसे पूजा पाठ हवन संतान सेवा माता पिता सेवा और धन अर्जित करना लेकिन आज के समय में लोगों ने सिर्फ धन अर्जित करने को ही मुख्य उद्देश मान लिया है और बाकी कार्यों से मुंह मोड़ लिया है इसी वजह से उनके जीवन में परेशानियां खड़ी हो गई है नवरात्रि में नवदुर्गा सहित 10 महाविद्याओं सहित सभी शक्तियां साधक के पूजन स्थान पर उपस्थित होती है और इनकी उपस्थिति साधक को स्वयं अनुभव हो जाती है नवरात्रि मनाने के बाद कई साधकों को कई दिनों तक अनुभव होते रहते हैं जोकि देवियों के आशीर्वाद के रूप में उन्हें प्राप्त होते हैं इसलिए सभी को नवरात्रि मनाना चाहिए यदि आपके परिवार के ऊपर किसी ने तांत्रिक प्रयोग किया हो तो वह भी मंत्र जप और हवन करने से नष्ट हो जाता है और आपकी कुल में सभी देवी देवता प्रसन्न रहते हैं और आपके घर में उन्नति होती है इसीलिए नवरात्रि को 6 तारीख ना मानकर एक त्यौहार के रूप में मनाना चाहिए और आशा है कि आप सभी साधक नवरात्रि को बहुत ही अच्छे से मनाएंगे आगे आने वाले पोस्ट में आपको नवरात्रि पूजन की विधि बताई जाएगी जय माता दी
जय श्री कृष्णा आज आपको एक ऐसी सत्य घटना सुनाने जा रहे हैं जो कि महाकाली साधना का परिणाम है एक गांव मध्य प्रदेश का जहां पर एक साधक रहता था यह साधक ज्यादा कोई विधि विधान नहीं जानता था और ना ही ज्यादा पूजा-पाठ में रहता था सिर्फ नियम से जीवन बिताया करता क्योंकि यह रात्रि में घर के बाहर खटिया लगा कर सोता था इसलिए इसके ऊपर किसी भी प्रकार का प्रहार करना बहुत ही आसान था क्योंकि जमीन जायदात इस साधक के पास बहुत थी इसलिए ना चाहते हुए भी गांव के कुछ लोगों से इसका वैर हो गया और वह लोग इस साधक को नुकसान पहुंचाने की योजना बनाने लगे कुछ दिनों के बाद साधक ने देखा कि रात्रि में जब वह खटिया पर सोता है तो कोई बहुत वजनदार चीज उसकी छाती पर आकर बैठ जाती है और उसे दबाने का प्रयास करती है उसके हाथ पैर मैं बहुत तेज झंझनी आती है लेकिन वह कुछ ना बोल पाता है ना हाथ पैर हिला पाता है उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है उसने यह बात किसी को पहले बताई भी नहीं लेकिन यह घटना उसके साथ प्रतिदिन होना शुरू हो गई खास करके अमावस्या और पूर्णिमा की रात उसके लिए बहुत ही दर्दनाक होती पूरे शरीर में बहुत तेज दर्द होता जो कि शरीर से बढ़ते बढ़ते मस्तिष्क में जाता और यह दर्द उसे बहुत तकलीफ देता उस साधक को ऐसा लगता की वह जैसे मर ही जाएगा और कोई शक्ति उसके प्राण खींचना चाहती है लेकिन खींच नहीं पा रही यह साधक प्रतिदिन बस यही नियम करता था कि भोजन करने के पहले स्नान अवश्य करता और अपने देवता को अगरबत्ती लगाता लेकिन क्योंकि इसके घर में देवता इसके पूर्वजों को आते थे इसी वजह से देवता की शक्ति इसके साथ नहीं थी अब इसने एक ऐसे गुरुदेव से संपर्क किया जिनसे इस की मित्रता बहुत पुरानी थी लेकिन कभी इसने साधना कि नहीं गुरुदेव से आज्ञा लेकर महाकाली मंत्र जप शुरू किया और समीप के ही महाकाली मंदिर में प्रतिदिन जाकर अपना शीश झुका कर आता इस नियम में कोई भी चूक ना हो ऐसा दृढ़ संकल्प इस साधक ने ले लिया कि मैं बिना चूक किए प्रतिदिन महाकाली मंदिर अवश्य जाऊंगा और जाने लगा माता तो माता ही होती है इसके मंत्र जप की शक्ति माता तक पहुंच रही थी यह मंत्र जप किसी माला से नहीं करता ना कोई आसन था इसके पास यह तो बस खेतों में काम करते करते ही मंत्र जप करता रहता गुनगुनाता रहता और माता इससे प्रसन्न हो गई इस बार की अमावस्या को जब यह रात्रि में घर के बाहर खटिया लगा कर सो रहा थावही शक्ति जो इसे दबाती थी आ गई इस बार इसकी नींद खुल गई और साधक ने देखा कि लगभग 10 से 12 फीट का कोई काला सा व्यक्ति सामने से आ रहा है जो देखने से ही मनुष्य नहीं लग रहा बल्कि कोई प्रेत जैसा दिखाई दे रहा है इसने अपनी मां काली का मंत्र जो अब तक इसकी जिव्हा पर याद हो चुका था तुरंत जपना शुरू कर दिया और इसने अचानक देखा कि इसकी खटिया के ऊपर से एक बहुत तीव्रता से कोई स्त्री जैसी साड़ी पहनी हुई शक्ति हवा में उड़ती हुई उस प्रेतात्मा के ऊपर झपटी और उसे जमीन पर घसीटते हुए नदी के तरफ ले गई इसके पास इतनी शक्ति नहीं थी यह हिम्मत नहीं थी कि उठकर उनके पीछे जाता लेकिन इसे यह समझ में आ गया कि कोई ना कोई इसे बचाने के लिए ही आया है फिर इसने अगले दिन अपने उन गुरुदेव से संपर्क किया कि कल रात को मेरे साथ यह स्थिति हुई तब उन गुरुदेव ने यह ज्ञान दिया कि तुम्हारे ऊपर गांव के ही लोगों ने बहुत बड़ा शैतान जिसे जिन भी कह सकते हैं छोड़ा था और इसे 21 अमावस्या का संकल्प देकर भेजा गया था की 21 वी अमावस्या को यह तुम्हें मार देगा लेकिन यह तुम्हारी 21वी अमावस्या ही थी और वह शक्ति जिसने आकर तुम्हें बचाया व स्वयं मां काली का तत्व था जिसमें तुम्हारी रक्षा की है और अब यह जीवन भर तुम्हारे साथ ही रहेगी तुम महाकाली की ऐसी ही भक्ति करते रहना इतना सुनकर उस साधक ने गुरुदेव से गुस्से से पूछा कि यदि आप जानते थे कि यह शक्ति मेरे ऊपर प्रेत मेरे ऊपर छोड़ा गया है तो आपने इससे क्यों नहीं हटाया मेरी रक्षा क्यों नहीं की तब गुरुदेव ने कहा कि मैं जीवन में कितनी बार तुम्हारी रक्षा करता एक बार किसी प्रेत को हटाता दुश्मन दोबारा भेज देते फिर हटाता फिर भेज देते कभी ना कभी ऐसा अवश्य होता कि मेरे ध्यान से तुम चूक जाते मेरा ध्यान तुम पर से हट जाता और दुश्मन तुम्हें बड़ा प्रहार कर देते इससे अच्छा है कि क्यों ना तुम स्वयं अपने साथ ऐसी शक्ति को सिद्ध कर लो जो जीवन भर तुम्हारी रक्षा करें और मेरे जैसे किसी व्यक्ति की आवश्यकता ना पड़े इस वजह से मैंने तुम्हें मां काली का मंत्र दिया जिसका तुमने जाप किया और अब तुम जीवन भर के लिए सुरक्षित हो तुम नियम से रहते हो नियम से खाते पीते हो यह सब देख कर मैं जान गया था कि यदि तुम्हें महाकाली सिद्ध करा दी जाए तो तुम उनकी सेवा आसानी से कर लोगेतुम्हारी जीवन चर्या शुद्ध है इसीलिए तुम्हें यह मार्ग दिखाया क्योंकि सभी के बस की बात नहीं होती पवित्रता से रहना तो क्योंकि अब तुम जीवन भर के लिए सुरक्षित हो गए हो हमेशा माता की सेवा करते रहनाइस तरह इस सत्य घटना से यह पता चलता है कि एक साधारण मनुष्य भी साधारण तरीके से ही देवी शक्तियों को सिद्ध कर सकता है लेकिन विश्वास होना चाहिए जीवन चर्या शुद्ध और पवित्र खानपान होना चाहिए तो किसी भी देवी या देवता को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है इस साधना को अपने गुरु से संपर्क करके ही करना चाहिए क्योंकि गुरु आज्ञा से की गई साधना बहुत कम संसाधनों से भी सिद्ध हो जाती है स्वयं की इच्छा
किसी भी मंत्र जप या साधना को करने के पहले सुरक्षा घेरा बनाया जाता है सुरक्षा घेरा बनाने के लिए राई या चाकू का उपयोग किया जाता है वैसे तो घर में साधना करने पर कोई डरने की बात नहीं होती लेकिन फिर भी सुरक्षा घेरा बनाने से भावनात्मक रूप से सुदृढ़ होते हैं इसलिए सुरक्षा घेरा बनाना चाहिए सुरक्षा घेरा हर प्रकार की नकारात्मक सोच ऊर्जा और प्रभाव से साधक की रक्षा करता है सुरक्षा घेरा बनाने के लिए नीचे दिए गए भैरव मंत्र को पढ़ते हुए राई के दाने अपने दाहिने हाथ में लेकर साधक अपने साधना के कमरे में चारों तरफ 2 चार दाने फेंक दे इस तरह से वह कमरा सुरक्षित हो जाता है या चाहे तो यही भैरव मंत्र बोलते हुए चाकू से फर्श पर सिर्फ अपने चारों ओर एक अदृश्य लाइन खींच ले यह लाइन दिखाई नहीं देगी क्योंकि ना तो जमीन को खरोचना है और ना ही खोदना है सिर्फ हल्के हाथों से एक अदृश्य लाइन चाकू से बनाई जाती है जो कि एक नियम मात्र है इस भैरव मंत्र को एक बार बोलते हुए ही घेरा बनाना है बार-बार मंत्र को हर दिशा में राई फेंकते हुए नहीं बोलना आगे मंत्र दिया जा रहा है साधक चाहे तो इस मंत्र के अलावा भी अन्य कोई भी मंत्र पढ़कर राई या चाकू की विधि से सुरक्षा घेरा बना सकता है जैसे बगलामुखी मंत्र हो या महाकाली मंत्र हो या शिवजी का मंत्र हो किसी भी सुरक्षा मंत्र से घेरा बनाया जा सकता है Tantrokt Bhairav kavach तांत्रोक्त भैरव कवच || सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः | पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||१|| पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा | आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||२|| नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे | वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः||३|| भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा | संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||४|| ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः | सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः||५|| रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु | जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||६|| डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः | हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः||७|| पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः | मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||८|| महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा | वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा|
घर पर महालक्ष्मी योगिनी साधना सात्विक विधि से कैसे कर सकते हैं और क्या क्या सावधानियां रखना है पूर्ण विधि के साथ बता रहे हैं Mahalakshmi yogini sadhana vidhi satvik vidhi for home use Mahalakshmi yogini sadhana vidhi सावधानी एवं नियम 1 हमेशा सुरक्षा चक्र बनाकर ही साधना करें, 2 साधना काल में लोगों से साधना के विषय में बात ना करें. 3 बृहमचर्य का पालन करें. 4 जितना हो सके दिन में महालक्ष्मी की तस्वीर पर त्राटक करें फिर आँख बंद कर उसी तस्वीर को अंदर देखने की कोशिश करें.. 5 रात में महालक्ष्मी योगिनी के लिए कुछ मिठाई कमरे के बाहर कहीं भी रखें और सुबह देखें मिठाई का रंग बदला है या मिठाई गायब है 6 रोज मंदिर में महालक्ष्मी के नाम का दीपक जलाकर आये यदि कोई आभास ना हो रहा हो .. 7 खुद को तकलीफ दें जैसे साधना काल म़े उपवास रख लें या नंगे पैर मंदिर जाऐ 8 रोज महालक्ष्मी योगिनी से सिध्दि देने की प्रार्थना करें 9 रोज हवन करें हवन में श्रीनायायण के नाम की भी आहुति दें और प्रार्थना करें कि वे महालक्ष्मी को आज्ञा दें सिध्दी देने के लिए 10 साधना से पहले हाथ पैर के नाखून कटा दें साफ शरीर कर लें ,दाढी रख सकते है कोई परेशानी नहीं है 11 शाम को साधना के पहले अवश्य स्नान करें. 12 साधना के इन दिनों में किसी के घर व्यक्तिगत तौर पर खाना ना खायें और यदि खाना पड़े तो इस बात का विशेष ध्यान रखें की उस घर में मांसाहार ना खाते हो , 13 दूसरे व्यक्ति के कपड़ें ना पहने ,किसी को छूऐ नहीं बेवह ,कम बोले शांत रहे 14 साधना करते समय नयी धोती या टावल लपेटकर साधना करें ,गंदे या पुराने कपड़े ना पहने ,क्यों कि हर रोज नये कपड़ें नहीं खरीद सकते इसलिए टावल या लूंगी लपेटकर कर साधना करें दिन में टावल धोले रात को फिर लपेट लें टावल मोटा नहीं पतला पीला या सफेद खरीदलाये……. 15….महालक्ष्मी एक स्त्री है इसलिए श्रृंगार की थोड़ी बहुत सामग्री भी लाकर रखें, 16 जिस तरह एक खूबसूरत स्त्री के लिए बैचेन हो जाते हैं उसी तरह महालक्ष्मी योगिनी के लिए बैचेनी होना चाहिए ,जो महालक्ष्मी की.तस्वीर आप सामने रखते हैं उसी रुप में उनके दर्शन के लिए लगातार फोटो पर ज्यादा से ज्यादा त्राटक करें 17 ये साधना के दिन दिन रात महालक्ष्मी योगिनी का नाम लेकर बिताये महालक्ष्मी से बात करें अपनी हर समस्या बताते रहें जैसे वो आपके साथ ही हैं 18 हर पल महालक्ष्मी योगिनी के लिए तड़पे जैसे वो आपके साथ सालों से थी और अचानक कहीं चली गई है 19 साधना काल मे किसी दूसरी स्त्री के ख्याल मे डूबने की गलती ना करें ,रात्रि में जाप से पहले या बाद में किसी स्त्री से फोन पर बात ना करें महालक्ष्मी योगिनी आपके पास ही होती है वरना वह आपको दूसरी स्त्री के तरफ मन लगा देगी ओर साधना भंग हो जाऐगी. ( महालक्ष्मी योगिनी साधना ) तांत्रोक्त भैरव कवच || सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः | पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||१|| पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा | आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||२|| नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे | वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः||३|| भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा | संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||४|| ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः | सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः||५|| रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु | जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||६|| डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः | हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः||७|| पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः | मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||८|| महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा | वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा| JAY SHREE KRISHNA मंत्र जपते समय माला मे जो सुमेरु होता हैं उसको लांघना नहीं है जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिरी दाने को पहला दाना मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा। इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें। पूजा सामग्री:- सिन्दुर, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुर्ता इत्र, जल पात्र मे जल, चम्मच, मोली/कलावा, अगरबत्ती, देशी घी का दीपक, चन्दन, केशर, कुम्कुम,अष्टगन्ध विधि :Mahalakshmi yogini sadhana vidhi पूजन के लिए नहाधोकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। अब अपनी शुध्दि के लिए आचमन करें हाथ में जल लिए हुए आप इन मंत्रों के साथ ध्यान करें – ॐ केशवाय नम: ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: ॐ ह्रषीकेशाय नम: और जल को तीन बार में तीन बूंद पीये इस प्रकार आचमन करने से आप शुध्द हो जाऐंगे,सामग्री अपने पास रख लें। बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने ऊपर जल को छिडके। इस मन्त्र को बोलते हुए सभी सामग्रियों पर जल छिड़के ऐसा करने से सामग्री के सभी अशुध्दिया दूर हो जाती हैं इस मंत्र का उपयोग सभी पूजन और साधनाओ मे सामग्रियों को शुध्द करने में कर सकते हैं – ॐह्रीं त्रिपुटि त्रिपुटि कठ कठ आभिचारिक-दोषं कीटपतंगादिस्पृष्टदोषं क्रियादिदूषितं हन हन नाशय नाशय शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा. ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ (निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा को गांठ लगाये / स्पर्श करे) ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥ (अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें) ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥ (अपने सीधे हाथ से आसन का कोना छुए और कहे) ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥ संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले। मैं ……..अमुक……… गोत्र मे जन्मा,……… ………. यहाँ आपके पिता का नाम………. ……… का पुत्र……………………….. निवासी…………………..आपका पता………………………. आज सभी देवी-देवताओं को साक्षी मानते हुए महालक्ष्मी योगिनी की पुजा, गणपती और गुरु जी की पुजा महालक्ष्मी योगिनी की सिद्धी प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जल और सामग्री को छोड़ दे। ऋष्यादिन्यास: ॐ श्रीमार्कंडेयमेधसऋषिभ्यां नम: – शिरसि ( मंत्र पढ़ते हुए सर को छुए)