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श्री महालक्ष्मी व्रत कथा Mahalakshmi vrat katha

श्री महालक्ष्मी व्रत कथा Mahalakshmi vrat katha

एक समय की बात है महर्षि द्वैपायन व्यास जी हस्तिनापुर आए । उनका आगमन सुनकर समस्त राजकुल के कर्मचारी महाराज भीष्म सहित उनका सम्मान आदर करते हुए राजमहल में महाराज को सोने के सिंहासन में विराजमान कर अधर्य – पाद्य आचमन से उनका पूजन किया । व्यास जी के विश्राम होने पर राजा रानी गांधारी ने माता कुंती से हाथ जोड़कर प्रश्न किया की है महाराज आप त्रिकालदर्शी हैं । आपको सभी की जानकारी है आपसे हमारी प्रार्थना है कि स्त्रियों को कोई ऐसा व्रत पूजन बताइए जिससे हमारे राज्य लक्ष्मी सुख, पुत्र परिवार सदा सुखी रहे इतना सुनकर व्यास जी ने कहा हम ऐसे व्रत का उल्लेख कर रहे हैं जिससे सदा लक्ष्मी जी स्थिर होकर आपको सुख प्रदान करेंगे

यह श्री महालक्ष्मी जी का व्रत है जिसे 16 दिन तक किया जाता है जिसका पूजन प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण पक्ष की अष्टमी का माना जाता है तब राजा रानी गांधारी ने कहा महात्मा यह व्रत कैसे प्रारंभ किया जाता है इसका विधान क्या है विस्तार से हमें बताने की कृपा करें महर्षि जी ने कहा भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन सुबह मन में व्रत का पालन करें संकल्प लेकर किसी जलाशय में जाकर स्नान करके वस्त्र स्वच्छ वस्त्र या नए व्यस्त धारण कर सकते हैं दूर्वा से महालक्ष्मी जी को जल का तर्पण करके प्रणाम करना चाहिए फिर घर आकर शुद्ध 16 धागों वाले धागे का एक धागा बनाकर प्रतिदिन एक गांठ लगानी चाहिए

इस 16 दिन की 16 गांठ का एक धागा तैयार कर अश्वनी माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखकर मंडप बनाकर चंदोबा तान कर उसके नीचे माटी के हाथी पर महालक्ष्मी माता की मूर्ति स्थापित कर तरह तरह के पुष्प माला से लक्ष्मी जी व हाथी का पूजन करें व तरह तरह के  पकवान बना सकते हैं

 लक्ष्मी जी और हाथी का पूजन नैवेद्य समर्पण करके करना चाहिए ।श्रद्धा सहित महालक्ष्मी व्रत करने से आप लोगों की राजलक्ष्मी सदा स्थिर रहेगी, ऐसा विधान बताकर व्यास जी अपने आश्रम को चले गए।
   इधर समय के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से समस्त राजघराने में नारियों व नगर स्त्रियों ने महालक्ष्मी जी का व्रत प्रारंभ कर दिया बहुत सी नारी ने गांधारी के साथ प्रतिष्ठा पाने हेतु व्रत का साथ देने लगी । कुछ नारियां माता कुंती के साथ भी व्रत आरंभ करने लगी ।

पर, गांधारी जी द्वारा कुछ द्वेष भाव चलने लगा ऐसा होते-होते 15 दिन व्रत के समाप्त होकर 16वा  दिन अश्वनी कृष्ण पक्ष की अष्टमी आ गई उस दिन प्रात काल से नर नारियों ने उत्सव मनाना आरंभ कर दिया और समस्त नर नारी राजमहल में गांधारी जी के यहां उपस्थित हो तरह-तरह से महालक्ष्मी जी के मंडप व  माटी के हाथी बनाने सजाने की तैयारी करने लगे।

गांधारी जी ने नगर की सभी प्रतिष्ठित नारियों को बुलाने को सेवक भेजा ,पर माता कुंती को नहीं बुलवाया और ना कोई सूचना भेजी । उत्सव में बाजे गाजे की धुन बजने लगी जिससे सारे हस्तिनापुर में खुशी की लहर दौड़ गई ।

माता कुंती ने इसे अपना अपमान समझकर बड़ा रंज बनाया और व्रत की कोई तैयारी नहीं ।
कि इतने में महाराज युधिष्ठिर ,अर्जुन ,भीम सेन, नकुल ,सहदेव सहित पांचो पांडव उपस्थित हो गए ,तब अपनी माता को गंभीर देख अर्जुन ने प्रार्थना की- माता आप इतने दुखी क्यों हो ? क्या हम आपके दुख का कारण समझ सकते हैं और दुख दूर करने में भी सहायक हो सकते हैं ? आप बताएं – तब माता कुंती ने कहा -बेटा कुल में अपमान ( रिश्तेदारों द्वारा किया अपमान) से बढ़कर कोई दुख नहीं है आज नगर में महालक्ष्मी व्रत उत्सव में रानी गांधारी ने सारे नगर की औरतों को सम्मान से बुलाकर ईर्ष्या पूर्वक मेरा अपमान कर उत्सव में मुझे नहीं बुलाया है

पार्थ ने कहा माता क्या वह पूजा का विधान सिर्फ दुर्योधन के महल में ही हो सकता है ,आप अपने घर में नहीं कर सकती ? तब कुंती ने कहा बेटा कर सकती हूं पर साज-समान इतनी जल्दी तैयार नहीं हो पाएगा,
क्योंकि गांधारी के सौ पुत्रों ने माटी का विशाल हाथी तैयार किया है और पूजन करके सजाया है ऐसा विधान तुमसे ना बन सकेगा उनके उत्सव की तैयारी आज दिन भर से हो रही है तब पार्थ ने कहा माता आप पूजन की तैयारी कर नगर में बुलावा भेजे ।

मैं ऐसा हाथी पूजन में लेकर आऊंगा की हस्तिनापुर वासियों ने नहीं देखा होगा ना ही उसका कभी पूजन किया होगा
मैं आज ही इंद्रलोक से इंद्र का हाथी ऐरावत जो बहुत ही पूजनीय है उसे बुलाकर लेकर आता हूं आप अपनी तैयारी करें


फिर इधर भी माता कुंती ने सारे नगर में पूजा का ढिंढोरा पिटवा दिया पूजा की विशाल तैयारी होने लगी तब अर्जुन ने सुरपति को एरावत भेजने को पत्र लिखा और एक दिव्य बाण में बांधकर धनुष पर रखकर देवलोक इंद्र की सभा में फेंका बाण से इंद्र ने पत्र निकाल कर पड़ा तो अर्जुन को लिखा की है पांडु कुमार ऐरावत भेज तो दूंगा पर इतनी जल्दी स्वर्ग से कैसे उतर सकता है तुम इसका उत्तर शीघ्र लिखो

पत्र पाकर अर्जुन ने बाणो का रास्ता बनाकर हाथी के उतरने की बात लिखकर पत्र वापस कर दिया इंद्र ने सारथी को आज्ञा दी के हाथी को पूर्ण रूप से सजाकर हस्तिनापुर में उतारने का प्रबंध करो

महावत ने तरह-तरह के साज समान से ऐरावत को सजाया देवलोक की अंबरझूल डाली गई स्वर्ण की पालकी रत्न जड़ित कलशों  से बांधी गई, माथे पर रत्न जड़ित जाली सजाई गई, पैरों में घुंघरू सोने की मड़िया बांधी गई जिनकी चका चौंध पर मानव जाति की आंखें नहीं ठहर सकती थी

https://youtu.be/s7X1DVR17vQ

इधर सारे नगर में धूम हुई की कुंती माता के घर सजीव इंद्र का ऐरावत बाणों के रास्ते पर स्वर्ग से उतरकर पूजा जाएगा सारे नगर के नर नारी बालक और वृद्धों की भीड़ एरावत को देखने एकत्रित होने लगी

गांधारी के राजमहल में भी इस बात की चर्चा फैल गई नगर की नारियां पूजा थाली लेकर भागने लगी माता कुंती के महल में उपस्थित होने लगी देखते ही देखते सारा महल पूजन करने वाली नारियों से भर गया सारे नगर वासी ऐरावत के दर्शनों के लिए गली सड़क महल अटारी में एकत्रित हो गए

माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने हेतु रंग-बिरंगे चौक पूर्वाकर नवीन रेशमी वस्त्र बिछा दिए हस्तिनापुर वासी तरह तरह की स्वागत की तैयारी में फूल माला अबीर केसर  हाथों में लेकर खड़े हो गए
इधर इंद्र की आज्ञा पाकर ऐरावत हाथी स्वर्ग से बाणों के बने हुए रास्ते में धीरे-धीरे आकाश मार्ग से उतरने लगा इसके आभूषण की आवाज नगर वासियों को आने लगी ऐरावत के दर्शन के लिए नर नारियों ने जय जयकार के नारे लगाना आरंभ किया
ठीक सायंकाल ऐरावत माता कुंती के महल के चौक में उतर आया समस्त नर नारियों ने पुष्प माला, अबीर  केसर चढ़ाकर हाथी का स्वागत किया

महाराज धोम्य पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित कराकर वेद मित्रों द्वारा पूजा की गई नगर वासियों ने लक्ष्मी पूजा का कार्य करके एरावत की पूजा की फिर तरह-तरह के मेवा पकवान ऐरावत को खिलाए गए । ऊपर से यमुना जल पिलाया गया फिर तरह-तरह के पुष्पों की ऐरावत पर वर्षा की गई ।

पुरोहित द्वारा स्वास्तिक पुण्य वचन कर व्रती नारियों द्वारा लक्ष्मी जी का पूजन विधान से कराया कुंती ने व्रत के डोरे के धागे में 16 वी गांठ लगाकर लक्ष्मी जी के सामने समर्पण किया
ब्राह्मणों को पकवान, मेवा मिठाई देकर भोजन की व्यवस्था की गई तब वस्त्र , द्रव्य,सोना,व अन्य आभूषण देकर ब्राह्मणों को संतुष्ट किया गया तत्पश्चात सभी नर नारियों ने महालक्ष्मी जी का दीपक जलाकर प्रेम से संपूर्ण पूजन कर  आरती की –
 

जय मां लक्ष्मी

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