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29/09/2023

एक साधिका की सत्य घटना केदारनाथ यात्रा kedarnath yatra

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केदारनाथ की घटना Kedarnath ki ghatna

केदारनाथ की यात्रा से संबंधित आज आपको एक घटना बताते हैं।जो किसी साधिका की अपनी अनुभूति है। वेद और पुराणों में वर्णित भगवान श्री भोलेनाथ की कृपा की चर्चा तो सभी जानते हैं, भोलेभंडारी की कृपा को बरसते हुए भी साक्षात् देखा गया है। 

  केदारनाथ यात्रा में हुआ यह कि एक साधारण परिवार कि साधारण सी साधिका एक दिन सपने में शिवलिंग की पूजन करते हुए वह स्वयं को देखती है,अचानक से उसके मन-मस्तिष्क में भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा का जन्म होने लगा। मन के भीतरी आयाम में हुए परिवर्तन बाहरी परिवर्तन के भी जन्मदाता होते हैं।वह साधिका घर में भोजन बनाती तो कान में हेड फ़ोन लगा कर हर समय मंत्र सुनती रहती,इस तरह से उसके शरीर में ऊर्जा के विज्ञान के कारण इतनी ऊर्जा बन गई कि एक दिन वह रात्रि भोजन बना रही थी।

रात्रि के क़रीब 8:30 बजे होंगे,वह मंत्र सुनते हुए रोटी बना रही थी कि अचानक उस साधिका ने अपने दाहिने तरफ़ रसोई घर में ही कोई बीस-बाईस साल की युवती को मुस्कुराते हुए देखा।वह युवती के मुख-मंडल पर ऐसी दिव्य तेज थी कि मानो उसके चेहरे पर 100 वाट की बल्ब लगी हो। उन्होंने बौद्ध भिक्षुकों के रंग वाले कपड़े पहन रखे थे और वो युवती रूपी देवी ,थी तो साधिका के घर में किंतु उन देवी के पीछे का दृश्य बर्फ से ढँका पहाड़-मानो कैलाश पर्वत रहा हो।उस साधिका की दृष्टि क्षण भर के लिए बस पड़ी होगी उन पर ।अर्थात् इतना ही कि ऊपर वर्णित सारी चीजें वो समझ पाए ।फिर सब ग़ायब हो गया ।

केदारनाथ यात्रा के तीन महीने पहले अचानक साधिका के घर में सभी सदस्यों का “केदारनाथ यात्रा”की योजना बनी। 13 अक्तूबर 2021 में सपरिवार केदारनाथ की यात्रा हेतु निकल पड़ी। हवाई मार्ग से यात्रा होनी थी इसलिए 13 अक्तूबर को ही कुछ ही घंटे उपरांत देहरादून एयरपोर्ट में पहुँच कर ,फाटा के लिए गाड़ी ली गई। कहते हैं,उत्तराखण्ड की देवी हैं देवी “धारी देवी “।

हम सब किसी दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश हेतु दरवाज़ा या घंटी बजाते हैं। धारी देवी मंदिर में जा कर माथा टेकने से उनकी अनुमति समान ही है। एक बालक अपनी माता के श्री चरणों में सिर रख जैसे उनसे अनुमति के साथ साथ उनसे उत्तराखण्ड जैसे प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्र में माता से रक्षा हेतु समर्पित भाव से आशीर्वाद माँग रहा हो।नदी के बीच स्थापित यह मंदिर बड़ा ही मनोहारी लगता है। कहते हैं जो भी लोग इनकी उपेक्षा कर अपनी गाड़ी रोकर इनसे आशीर्वाद लिये बिना आगे बढ़ जाते हैं,

उन्हें बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।नदी से संबंधित सरकारी योजनार्थ इस मंदिर को कहीं अपने स्थान से कहीं और स्थापित करने की उत्तराखण्ड सरकार ने पहल की थी, यहाँ के स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसी कारण जून 2013 की भीषण त्रासदी उत्तराखण्ड में आई थी। यहाँ की सरकार भी इनकी अवहेलना करने से डरती है। 

धारी देवी माता के दर्शन के उपरांत आगे के पड़ाव हेतु चला गया और जिस होटल में बुकिंग थी फाटा में वहाँ रात भर रुका गया। रास्ते का थकान किंतु अलखनंदा की अठखेलियाँ करते हुए इस पवित्र नदी के किनारे होटल के कमरे से देख,मन और शरीर की सारी थकान समाप्त हो गई। सुबह स्नान ध्यान के बाद हेलीकाप्टर से केदार घाटी के दृश्य देखते हुए भोलेनाथ के दर्शन की तीव्र इच्छा मन को रोमांचित कर रही थी कि अचानक सूचना मिली, तकनीकी कारणों से अनिश्चित क़ालीन हेलीकॉप्टर की सुविधा स्थगित कर दी गई है। मन बड़ा उदास हुआ। केदारनाथ के दर्शन धूमिल नज़र आने लगे।

किंतु हिम्मत बटोरते हुए पुनः पैदल यात्रा का मन बना। यात्रा शुरू की गई, कुछ ही किलोमीटर चलने पर ऊँचाई बढ़ने लगी और साँसों की समस्या आने लगी,लगा जैसे केदारनाथ के दर्शनों की इच्छा अधूरी रह जाएगी और लौटना पड़ जाएगा।जब हिम्मत टूटने लगती है तो प्रभु का सहारा मिल जाता है।रास्ते में तुरंत कोई हज़ारों फूलों की सुगंध जैसे आह्वान के साथ ही पीछे लग गये और जैसे शरीर को हल्का कर दिया गया हो या पीछे से कोई जैसे सहारा दिए शरीर का आधा भार उठाए चलने में सहायता कर रहा हो-कौन सी अदृश्य शक्ति थी वो,मालूम नहीं। 

भोले के दर्शन हेतु बहुत योजना बना कर गई थी वह, मंदाकिनी में स्नान कर दर्शन करूँगी—किंतु संभवतः वहाँ जाने मात्र से ही शरीर और आत्मा की अशुद्धियाँ समाप्त होने लगती हैं।चलते चलते सुबह से रात दस बज चुके होते हैं और अब आगे चलने की शक्ति नहीं ,इसलिए भीषण ठण्डी भरे रात्रि में केदारनाथ मंदिर से ठीक एक किलोमीटर पहले एक एल शेप की छत मिलती उसी के नीचे ठण्ड से किकुड़ते रात बिताया। सुबह ठीक 3:20 बजे उस साधिका की नींद खुली और उसने सिर उठा कर देखा तो उस दिव्य स्थान से पेड़ पौधे नदियाँ सब मानवीय रूप धारण कर हाथ में आरती के थाल लिए थाल में धधकती ज्वाला और उतना ही तेज़ उन सभी मानवीय रूप धारण किए सभी युवतियों के चेहरे पर थी,

सभी भोलेनाथ की आरती-पूजन हेतु न जानें कितने असंख्य देवी देवता, यक्ष ढोल नगाड़े बजाते हुए सब मुख्य मंदिर की तरफ़ जा रहे थे। यह नजारा देख साधिका डर गई।क्योंकि वह तुरंत सो कर उठी थी,उसे कुछ समझ आता तब तक सारी चीजें अदृश्य हो चुकी थी।साधिका के दिमाग़ में वही दृश्य और घंटा नाद की ध्वनि हमेशा गूँजती रहती है बस। 

 उस स्थान की पवित्रता इतनी है कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है।उस पवित्र स्थान में शौच आदि भी करना धरती को अपवित्र करने जैसा है,उसकी दिव्यता -चारो तरफ़ श्वेत हिमाच्छादित पर्वत,नीले आकाश धरती पर भी बर्फ की चादर बिछी हुई,ऐसा लगता है जैसे सचमुच भोलेनाथ की दिव्य उपस्थिति हो ही। दर्शन हुए और साधिका को वहाँ पाँच पत्तों वाला केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ा बिल्व पत्र मिला।वहाँ के पुजारी ,जिन्हें “रावल” कहते हैं ,उन्होंने दिया। साधिका “पंचकेदार “ के प्रतीक के रूप में वह बिल्व पत्र लेकर ख़ुशी से रोने लगी और मुख्य मंदिर की परिक्रमा के उपरांत भोलेनाथ का ध्यान कर जप की ।

क्योंकि हिमालय क्षेत्र में समय की गति अधिक होती है।इसलिए सामान्य क्षेत्र में अगर एक घंटा जप किया गया हो तो हिमालय क्षेत्र में उसकी गणना दसगुणा मानी जाती है। बाद में सभी सफ़ाई कर्मियों को रुपये दान में देते हुए वहाँ जीतने भी भोलेनाथ की सेवा में वैराग्य को प्राप्त संत थे, उन सभी को दान एवं उनके समीप नतमस्तक होते हुए साधिका वापसी की ओर आने लगी।

 केदारनाथ की वह यात्रा तो तीन साल पहले की थी किंतु आज भी वह साधिका उसी मनोरम स्थान और मानवीय रूप धारण किए देवी-देवताओं को नहीं भूल पाती। उसे आज भी रात्रि के सन्नाटे में वही नाद और बैल के गले की घंटी सुनाई पड़ती है। रात को सोते हुए अचानक नींद खुल जाती है उस ध्वनि से कभी सोने को बिस्तर पर आने से अतिव्र प्रकाश से लगता है जैसे प्रकाश की गंगा में डूब जाएगी वह और अकबका कर नींद खुल जाती है।

साधिका पंच तत्वों से बने शरीर की आवश्यकता नींद और भूख जैसी सामान्य चीजें हेतु प्रार्थना करती है कि देह दिया है तो इसकी स्थूलता की आवश्यकता मजबूरी है,तब चीजें सामान्य हो पाती हैं,लगता है जैसे, किसी जन्म की साधना अधूरी रह गई हो जैसे। किंतु यह मूर्ख बुद्धि – माया के कारण अधिक समझ नहीं पाता,

विवेकानंद को रामकृष्ण मिले और उँगली पकड़ कर साधना के उच्चतम द्वार की प्राप्ति करा दी, जहाँ ब्रह्म और आत्मा की चेतना में कोई अभिन्नता नहीं रह जाती, इस साधिका ने भी ऐसे ही पूज्यवर के श्री चरण को पकड़ रखे हैं , सम्भव हो भविष्य में जीव जगत् के झंझटों की निवृत्ति के पश्चात्, आत्मा का साक्षात्कार परमात्म चेतना से हो जाये। 

जय श्री कृष्णा 

One thought on “एक साधिका की सत्य घटना केदारनाथ यात्रा kedarnath yatra

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