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RAHASYA, sadhana vidhi

एक साधिका की सत्य घटना केदारनाथ यात्रा kedarnath yatra

एक साधिका की सत्य घटना Kedarnath Yatra, kedarnath track,kedarnath incidence, केदारनाथ की घटना Kedarnath ki ghatna केदारनाथ की यात्रा से संबंधित आज आपको एक घटना बताते हैं।जो किसी साधिका की अपनी अनुभूति है। वेद और पुराणों में वर्णित भगवान श्री भोलेनाथ की कृपा की चर्चा तो सभी जानते हैं, भोलेभंडारी की कृपा को बरसते हुए भी साक्षात् देखा गया है।    केदारनाथ यात्रा में हुआ यह कि एक साधारण परिवार कि साधारण सी साधिका एक दिन सपने में शिवलिंग की पूजन करते हुए वह स्वयं को देखती है,अचानक से उसके मन-मस्तिष्क में भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा का जन्म होने लगा। मन के भीतरी आयाम में हुए परिवर्तन बाहरी परिवर्तन के भी जन्मदाता होते हैं।वह साधिका घर में भोजन बनाती तो कान में हेड फ़ोन लगा कर हर समय मंत्र सुनती रहती,इस तरह से उसके शरीर में ऊर्जा के विज्ञान के कारण इतनी ऊर्जा बन गई कि एक दिन वह रात्रि भोजन बना रही थी। रात्रि के क़रीब 8:30 बजे होंगे,वह मंत्र सुनते हुए रोटी बना रही थी कि अचानक उस साधिका ने अपने दाहिने तरफ़ रसोई घर में ही कोई बीस-बाईस साल की युवती को मुस्कुराते हुए देखा।वह युवती के मुख-मंडल पर ऐसी दिव्य तेज थी कि मानो उसके चेहरे पर 100 वाट की बल्ब लगी हो। उन्होंने बौद्ध भिक्षुकों के रंग वाले कपड़े पहन रखे थे और वो युवती रूपी देवी ,थी तो साधिका के घर में किंतु उन देवी के पीछे का दृश्य बर्फ से ढँका पहाड़-मानो कैलाश पर्वत रहा हो।उस साधिका की दृष्टि क्षण भर के लिए बस पड़ी होगी उन पर ।अर्थात् इतना ही कि ऊपर वर्णित सारी चीजें वो समझ पाए ।फिर सब ग़ायब हो गया । केदारनाथ यात्रा के तीन महीने पहले अचानक साधिका के घर में सभी सदस्यों का “केदारनाथ यात्रा”की योजना बनी। 13 अक्तूबर 2021 में सपरिवार केदारनाथ की यात्रा हेतु निकल पड़ी। हवाई मार्ग से यात्रा होनी थी इसलिए 13 अक्तूबर को ही कुछ ही घंटे उपरांत देहरादून एयरपोर्ट में पहुँच कर ,फाटा के लिए गाड़ी ली गई। कहते हैं,उत्तराखण्ड की देवी हैं देवी “धारी देवी “। हम सब किसी दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश हेतु दरवाज़ा या घंटी बजाते हैं। धारी देवी मंदिर में जा कर माथा टेकने से उनकी अनुमति समान ही है। एक बालक अपनी माता के श्री चरणों में सिर रख जैसे उनसे अनुमति के साथ साथ उनसे उत्तराखण्ड जैसे प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्र में माता से रक्षा हेतु समर्पित भाव से आशीर्वाद माँग रहा हो।नदी के बीच स्थापित यह मंदिर बड़ा ही मनोहारी लगता है। कहते हैं जो भी लोग इनकी उपेक्षा कर अपनी गाड़ी रोकर इनसे आशीर्वाद लिये बिना आगे बढ़ जाते हैं, उन्हें बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।नदी से संबंधित सरकारी योजनार्थ इस मंदिर को कहीं अपने स्थान से कहीं और स्थापित करने की उत्तराखण्ड सरकार ने पहल की थी, यहाँ के स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसी कारण जून 2013 की भीषण त्रासदी उत्तराखण्ड में आई थी। यहाँ की सरकार भी इनकी अवहेलना करने से डरती है।  धारी देवी माता के दर्शन के उपरांत आगे के पड़ाव हेतु चला गया और जिस होटल में बुकिंग थी फाटा में वहाँ रात भर रुका गया। रास्ते का थकान किंतु अलखनंदा की अठखेलियाँ करते हुए इस पवित्र नदी के किनारे होटल के कमरे से देख,मन और शरीर की सारी थकान समाप्त हो गई। सुबह स्नान ध्यान के बाद हेलीकाप्टर से केदार घाटी के दृश्य देखते हुए भोलेनाथ के दर्शन की तीव्र इच्छा मन को रोमांचित कर रही थी कि अचानक सूचना मिली, तकनीकी कारणों से अनिश्चित क़ालीन हेलीकॉप्टर की सुविधा स्थगित कर दी गई है। मन बड़ा उदास हुआ। केदारनाथ के दर्शन धूमिल नज़र आने लगे। किंतु हिम्मत बटोरते हुए पुनः पैदल यात्रा का मन बना। यात्रा शुरू की गई, कुछ ही किलोमीटर चलने पर ऊँचाई बढ़ने लगी और साँसों की समस्या आने लगी,लगा जैसे केदारनाथ के दर्शनों की इच्छा अधूरी रह जाएगी और लौटना पड़ जाएगा।जब हिम्मत टूटने लगती है तो प्रभु का सहारा मिल जाता है।रास्ते में तुरंत कोई हज़ारों फूलों की सुगंध जैसे आह्वान के साथ ही पीछे लग गये और जैसे शरीर को हल्का कर दिया गया हो या पीछे से कोई जैसे सहारा दिए शरीर का आधा भार उठाए चलने में सहायता कर रहा हो-कौन सी अदृश्य शक्ति थी वो,मालूम नहीं।  भोले के दर्शन हेतु बहुत योजना बना कर गई थी वह, मंदाकिनी में स्नान कर दर्शन करूँगी—किंतु संभवतः वहाँ जाने मात्र से ही शरीर और आत्मा की अशुद्धियाँ समाप्त होने लगती हैं।चलते चलते सुबह से रात दस बज चुके होते हैं और अब आगे चलने की शक्ति नहीं ,इसलिए भीषण ठण्डी भरे रात्रि में केदारनाथ मंदिर से ठीक एक किलोमीटर पहले एक एल शेप की छत मिलती उसी के नीचे ठण्ड से किकुड़ते रात बिताया। सुबह ठीक 3:20 बजे उस साधिका की नींद खुली और उसने सिर उठा कर देखा तो उस दिव्य स्थान से पेड़ पौधे नदियाँ सब मानवीय रूप धारण कर हाथ में आरती के थाल लिए थाल में धधकती ज्वाला और उतना ही तेज़ उन सभी मानवीय रूप धारण किए सभी युवतियों के चेहरे पर थी, सभी भोलेनाथ की आरती-पूजन हेतु न जानें कितने असंख्य देवी देवता, यक्ष ढोल नगाड़े बजाते हुए सब मुख्य मंदिर की तरफ़ जा रहे थे। यह नजारा देख साधिका डर गई।क्योंकि वह तुरंत सो कर उठी थी,उसे कुछ समझ आता तब तक सारी चीजें अदृश्य हो चुकी थी।साधिका के दिमाग़ में वही दृश्य और घंटा नाद की ध्वनि हमेशा गूँजती रहती है बस।   उस स्थान की पवित्रता इतनी है कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है।उस पवित्र स्थान में शौच आदि भी करना धरती को अपवित्र करने जैसा है,उसकी दिव्यता -चारो तरफ़ श्वेत हिमाच्छादित पर्वत,नीले आकाश धरती पर भी बर्फ की चादर बिछी हुई,ऐसा लगता है जैसे सचमुच भोलेनाथ की दिव्य उपस्थिति हो ही। दर्शन हुए और साधिका को वहाँ पाँच पत्तों वाला केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ा बिल्व पत्र मिला।वहाँ के पुजारी ,जिन्हें “रावल” कहते हैं ,उन्होंने दिया। साधिका “पंचकेदार “ के प्रतीक के रूप में वह बिल्व पत्र लेकर ख़ुशी से रोने लगी और मुख्य मंदिर की परिक्रमा के उपरांत भोलेनाथ का ध्यान कर जप की । क्योंकि हिमालय क्षेत्र में

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64 yogini 64 योगिनी

64 योगिनी जैसे नाम से ही पता चलता है की 64 योगिनी 64 देवियों की शक्ति है क्योंकि परलोक की शक्तियां असंख्य अंश से मिलकर बनी होती है इसलिए यह 64 देवियां एक देवी के रूप में भी आ सकती है और चाहे तो अलग-अलग 64 रूपों में आ सकती है  पंच तत्वों से निर्मित शरीर रूप नहीं बदल सकते लेकिन पारलौकिक शक्तियां कितने भी रूप धारण कर सकती हैं आपने 64 योगिनियों के बारे में बहुत कुछ सुना होगा यह सभी आदिशक्ति मां काली के अंश अवतार कहलाते हैं तो कभी मां दुर्गा के दुर्गाकुल के अवतार कहलाते हैं यह सभी शक्तियां मां पार्वती महालक्ष्मी महाकाली और मा सरस्वती के अंश से भी उत्पन्न हुई है असल में सभी देवियों के अंश से कई योगिनिया उत्पन्न होती हैं जो उनकी सेविकाएं होती हैं 64 योगिनियों में 10 महाविद्याएं नवदुर्गाएं और अन्य शक्तियों के अवतारी अंश होते हैं इन्हें प्रमुखतः मां काली और मां दुर्गा के कुल से संबंध बताया जाता है  योगिनी शक्तियों का प्रयोग इंद्रजाल षट्कर्म वशीकरण मारण मोहन स्तंभन जैसी क्रियाओं व धन प्राप्ति व्यापार उन्नति में होता है जब इनका उद्देश्य सात्विक व पवित्र हो तो जल्दी सिध्द हो जाती है कोई भी साधक चाहे तो 64 योगिनी साधना के द्वारा इन्हें सिद्ध कर सकता है या किसी एक योगिनी को भी सिद्ध कर सकता है 64 योगिनी साधना करवाने की क्षमता बहुत ही कम गुरुओं में है क्योंकि 64 योगिनी शक्ति बहुत शक्तिशाली है  इनको संभालना भी बहुत सावधानी का कार्य है वैसे तो देश में कई राज्यों में 64 योगिनी मंदिर है जैसे उड़ीसा और मध्य प्रदेश हम मध्य प्रदेश के भेड़ाघाट में स्थित 64 योगिनी मंदिर के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं  इस मंदिर में गोलाकार आकृति में 64 योगिनीया स्थापित की गई हैं और उनके बीचो-बीच शिव पार्वती का मंदिर निर्मित है  यह मंदिर जबलपुर से लगभग 20-22 किलोमीटर दूर सफेद संगमरमर चट्टानों के लिए प्रसिद्ध भेड़ाघाट पर्यटन स्थल में उपस्थित है इन मंदिर की मूर्तियों को विधर्मियों ने खंडित किया था लेकिन आज भी यह मंदिर उपस्थित है एक समय तंत्र साधना का बहुत ही अच्छा केंद्र इस 64 योगिनी मंदिर में था यहां तंत्र विद्या भी सिखाई जाती थी यह मंदिर गोलकी मठ के नाम से भी प्रसिद्ध था लेकिन मुगलों के शासनकाल में यहां तंत्र साधनाएं बंद करा दी गई और गोलकी मठ को भी बंद कर दिया गया यहां दोबारा पूजा पाठ की शुरुआत बहुत ही बाद में हुई यह स्थान भेड़ाघाट 64 योगिनी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है इस मंदिर में भेड़ाघाट के समीप छोटी सी ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर गोलाकार रूप में 64 योगिनियों की प्रतिमा स्थापित है और बीचो-बीच भगवान शिव की प्रतिमा है  चारों तरफ यह 64 योगिनीया ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे शिवजी को ही देख रही हो इस मंदिर का निर्माण कलीचुरी वंश ने करवाया था यह मंदिर रानी दुर्गावती के राज्य में आता है ऐसी मान्यता है कि यहां पर दुर्वासा ऋषि ने साधना की थी अपनी नर्मदा परिक्रमा के दौरान  इसके बाद से यह स्थान साधना के लिए पवित्र माने जाने लगा था बाद में यहां पर मंदिर निर्माण कराया गया ऐसा माना जाता है कि यहां की नव विवाहित रानी नोहला देवी जब यहां आई तो सर्वप्रथम उन्होंने भगवान शिव के मंदिर का निर्माण करवाया और प्रांगण के तौर पर गोलाकार गोलकी मठ का निर्माण करवाया और फिर 64 योगिनियों की मूर्तियों का निर्माण करवाया गया इस प्रकार यह मंदिर बनकर तैयार हुआ 64 योगिनी पवित्र शक्तियों में से मानी जाती हैं जो साधक की जीवन पर्यंत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करती हैं योगिनी शक्ति सबसे उत्तम शक्ति होती है एक साधक के लिए सिद्धि के रूप में 64 योगिनियों में एक महालक्ष्मी योगिनी भी होती हैं जो माता लक्ष्मी का अंश अवतार है इस अंश अवतार की सिद्धि श्री शिवम गुरुजी ने प्राप्त करने के बाद साधना क्षेत्र में एक विस्फोट ला दिया था और 64 योगिनियों की लुप्त हुई साधना को दोबारा प्रचलन में ला दिया श्री शिवम गुरुजी बहुत ही कम आयु के ऐसे साधक व बाद में गुरु हुए जिन्होंने कठिन और उग्र बताई जाने वाली साधनाओं को भी बहुत ही सरल रूप से साधकों के बीच उपलब्ध करा दिया श्री शिवम जी बड़ी साधनाओं में रातों-रात प्रसिद्ध हो गए  क्योंकि उन्होंने ऐसी साधना सिद्ध की जिसमें कोई प्रतिद्वंद्वी थे ही नहीं कोई और इन साधनाओं को करने की हिम्मत जुटा ही नहीं पाया या उचित गुरु ही उपस्थित नहीं थे श्री शिवम जी ने वही साधनाएं आमजन में प्रचार व प्रसार की जो साधकों के जीवन में उन्नति प्रदान करें 64 योगिनी साधना भी पवित्र रूप में साधकों के बीच में शिवम् जी ने प्रकट की—— जय मां 64 योगिनी

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सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने के फायदे

सात मुखी रुद्राक्ष को अनंग बताया गया है वे लोग जिन्हें अत्याधिक धन की हानि हुई है और उनके पास इससे उबरने का कोई तरीका नहीं है, उन्हें इस रुद्राक्ष को पहनना चाहिए।इसमें अन्य रूपों के विपरीत भगवान शिव के अनंग रूप को दर्शाया गया है। यह मनका सप्तमातृकाओं द्वारा और धन की देवी मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से युक्त होता है, जो इसे और भी अधिक शक्तिशाली और लाभों से युक्त बनाता है। सातमुखी रुद्राक्ष का अधिपति ग्रह शनि है, जो अनुशासन और कर्मों पर गहरी नजर रखता है।इसे धारण करने से पहले ऊँ हुं नम: का जाप करना चाहिए। जो लोग गरीबी से मुक्ति चाहते हैं |इस रुद्राक्ष को धारण करने से गरीब व्यक्ति धनवान बन सकता है। इसका मंत्र है- ऊँ हुं नम:। इस मंत्र के साथ यह रुद्राक्ष धारण करें।इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व हनुमानजी हैं। यह शनि ग्रह द्वारा संचालित है।सातमुखी रुद्राक्ष में 7 दिव्य सर्प निवास करते हैं जो इसे धारण करने वाले को अपार शक्ति से जोड़ता है।यह शनि के क्रूर प्रभाव को कम करता है जो खुशी और विकास को प्रतिबंधित करता हैइसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह लाभकारी है।इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है।यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए।इसे धारण करने वाले की दरिद्रता दूर होती है तथा यह आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि करता है।इसे धारण करने वाला प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ ले सकते हैं। The 7 Mukhi Rudraksha, also known as the “Ananta” Rudraksha, is believed to bring prosperity, good health, and protection from negative energies. It is associated with the goddess Mahalakshmi, making it a popular choice for those seeking financial stability and abundance. The 7 Mukhi Rudraksha is also believed to help balance and harmonize the effects of the planet Saturn, potentially overcoming challenges and obstacles.  Key Benefits:

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