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साधना में सुरक्षा घेरा कैसे बनाया जाता है Suraksha ghera/chakra

साधना में सुरक्षा घेरा कैसे बनाया जाता है Suraksha ghera/chakra

किसी भी मंत्र जप या साधना को करने के पहले सुरक्षा घेरा बनाया जाता है सुरक्षा घेरा बनाने के लिए राई या चाकू का उपयोग किया जाता है वैसे तो घर में साधना करने पर कोई डरने की बात नहीं होती लेकिन फिर भी सुरक्षा घेरा बनाने से भावनात्मक रूप से सुदृढ़ होते हैं इसलिए सुरक्षा घेरा बनाना चाहिए सुरक्षा घेरा हर प्रकार की नकारात्मक सोच ऊर्जा और प्रभाव से साधक की रक्षा करता है सुरक्षा घेरा बनाने के लिए नीचे दिए गए भैरव मंत्र को पढ़ते हुए राई के दाने अपने दाहिने हाथ में लेकर साधक अपने साधना के कमरे में चारों तरफ 2 चार दाने फेंक दे इस तरह से वह कमरा सुरक्षित हो जाता है या चाहे तो यही भैरव मंत्र बोलते हुए चाकू से फर्श पर सिर्फ अपने चारों ओर एक अदृश्य लाइन खींच ले यह लाइन दिखाई नहीं देगी क्योंकि ना तो जमीन को खरोचना है और ना ही खोदना है सिर्फ हल्के हाथों से एक अदृश्य लाइन चाकू से बनाई जाती है जो कि एक नियम मात्र है इस भैरव मंत्र को एक बार बोलते हुए ही घेरा बनाना है बार-बार मंत्र को हर दिशा में राई फेंकते हुए नहीं बोलना आगे मंत्र दिया जा रहा है साधक चाहे तो इस मंत्र के अलावा भी अन्य कोई भी मंत्र पढ़कर राई या चाकू की विधि से सुरक्षा घेरा बना सकता है जैसे बगलामुखी मंत्र हो या महाकाली मंत्र हो या शिवजी का मंत्र हो किसी भी सुरक्षा मंत्र से घेरा बनाया जा सकता है

Tantrokt Bhairav kavach

तांत्रोक्त भैरव कवच ||

सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||||

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||||

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः||||

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||||

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः||||

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||||

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः||||

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||||

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा|

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